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________________ १०८ आचार्य श्री तुलसी 'परहिताय' होनी चाहिए । आचार्यवरने इसी भावनासे कई ग्रन्थ रचे है। उनमे जैन-सिद्धान्त-दीपिका, भिक्षु-न्याय-कणिका, शैक्ष-शिक्षा-प्रकरण आदि उल्लेखनीय है। जैन-दर्शनके विद्यार्थीके लिए ये अपूर्व उपयोगी है। कलकत्ता विश्वविद्यालयके आशुतोप प्राध्यापक, संस्कृत-विभागके अध्यक्ष डा० सातकडि मुकर्जीने __स्वयं मुझसे कई वार कहा-"खेद है कि 'जैन-सिद्धान्त-दीपिका जैसा उपयोगी ग्रन्थ अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ।” उक्त ग्रन्थोंका कलेवर मध्यम परिमाणका है। फिर भी उनमे अवश्य जाननेयोग्य तत्त्वोंका सुन्दर संकलन है। मुझे विश्वास है, ये कृतिया आपके कृतित्वकी अमर प्रतीक होंगी। १-ये उद्गार उम समय के है, जबकि जैन-सिद्धान्त दीपिका प्रकाशित नहीं थी।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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