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________________ विचारककी वीणाका झकार १०५ प्यासा नहीं रहा, जितना पहले था। इससे सुधार भी हुआ है, भूल भी। भोगमे त्याग और परिग्रहमें धर्मकी भावना जमी हुई थी, धर्मके नामपर हिंसा होती थी, उससे जनताकी आस्था हटी, यह श्लाघनीय सुधार है। मानव-शरीरमे दानवकी आत्मा उतनी खतरनाक नहीं होती, जितनी खतरनाक धर्मकी पोशाकमे अधर्म की पूजा होती है। इसके साथ-साथ भौतिक सुख-सुविधाओंको ही जीवनका चरम लक्ष्य मानकर आत्मा और धर्मकी वास्तविकताको भुला बैठे, यह वज्र भूल है।” __ युग एक प्रवाह होता है। उसमें वहनेवालोंकी कमी नहीं होती। आचार्य श्री हमे बहुत बार कहा करते है : "अनुस्रोतगामी होना सहज है। अपनी सत्य श्रद्धाको लिये हुए प्रतिस्रोतमे चले, कष्टोंको सहे, विचलित न हो, उसकी बलिहारी है।" आप अपने विचारोंके पक्के और अप्रकम्प हैं । जन्म-जयन्ती मनाने पर आपका विश्वास नहीं है। लोगोंने आपकी जन्म जयन्ती मनानेके लिए बहुत प्रार्थनाएं की, किन्तु आपने उसे स्वीकार नहीं किया। आप कहते हैं :___“जयन्ती किसी विशेष कार्य की हो, अथवा निर्वाण की हो, वह उचित है। निर्वाणके दिन समूचे जीवनका लेखाजोखा सामने आ जाता है। उसे आदमी देख सकता है, सीख सफता है।"
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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