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________________ ग्राचार्य श्री तुलसी अध्यात्मवाद विवादसे परे है । इसकी चर्चा करते हुए आपने लिखा है : "अध्यात्मशब्द मात्रका वाद है, वास्तविक नहीं। वास्तवमे तो वह आत्माकी गति है। बलात दूसरों पर अपनी संस्कृति या वाद लादनेकी चेष्टाका दूसरा रूप है संघर्ष में नहीं चाहता कि ऐसा हो। फिर भी में प्रत्येक विचारक व्यक्तिसे यह अनुगेव करूंगा कि वे अध्यात्मवादको अपनाएं। यह किसी देश या जातिका वाद नहीं, आत्माका वाद है। जिसके पास आत्मा है, चैतन्य है, हेयोपादयकी शक्ति है, उसका वाद है, इसलिए उसकी जागृति करना अपने आपको जगाना है। " आत्म-जागरण की इस विचारधारामे स्व-पर, जात-पात, देशविदेशसे ऊपर रहनेवाले तत्त्वकी सृष्टि होती है। वह अभेद सत्तामें सवको समाहित किये चलता है। उसमे दूध नहीं होता। विना उसके संघर्पकी बात ही क्या। भेदकी कल्पना व्यवहारके लिए है । आगे जाकर वह वास्तविक वनजाती है। उससे अहंभाव और जय-पराजयकी कल्पना पैदा होती है। उससे संघर्पका वीज उगता है। फिर युद्ध आदिकी परंपराएं चलती है । इसलिए विश्वशन्तिकी वातको सोचनेवालोको सबसे पहले आत्म-जागरणकी वात सोचनी चाहिए। आत्म-जागरणमे श्रद्धा पैदा कर अपने आपको सुधारना चाहिए। धार्मिकका यही कर्तव्य है। इस विषयको आपकी लेखनीने बडी कुशाग्रतासे छुआ है। "मनुष्य अपना सुधार नहीं चाहता। समाज का सुधार
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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