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________________ ९६ आचार्य श्री तुलसी देता है । उसकी मस्तीने बाबा डाल और सुख-सपनीको चूर-चूर कर आगे बढता हे 1 धर्म अमर है । धर्म सदा विजयी है । धर्ममे श्रद्धा और ज्ञान दोनों अपेक्षित है । इन भावनाओं का आपने 'अमर रहेगा वर्म हमारा', 'धर्मकी जय हो जय', 'सुज्ञानी दृढधर्मी बन जाओ' शीर्षक कविताओं मे दिलको हिलानेवाला विवेचन किया है । धर्म पर आक्षेप करनेवालोंको सक्रिय उत्तर देने के लिए आप वार्मिंकोको जो प्रेरणा देते है, उसमे आपकी सत्य-निष्ठा झलक पडती है - • "धार्मिक जन कायर वनजावे, यह आक्षेप हृदय अकुलावे | मुख- भजन हो तुरत इसीका, ऐसी क्रान्ति उठाओ । वनजाश्रो || दुनिया को, राह दिखाओ । मुज्ञानी दृढ धार्मिक बनजाओ । मानवता से मनज सुज्ञानी दृढधर्मी भूली भटकी इस सच्ची कहाए, मानवता धार्मिकता चाहे | बिन धार्मिकता जो मानवता, दानवता दरशाओ । सुज्ञानी दृढ धार्मिक बन जाओ ||
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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