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________________ ९० आचाय श्री तुलमी साथ-साथ रात्रि-जागरणकी कल्पनासे वेदनामे मार्मिकता आ जाता है। उसका चरम रूप अन्तजगतमे न रह सकनेके कारण बहिर्जगत्मे आ साकार बन जाता है। उसे कवि-कल्पना सुनाने की अपेक्षा दिखानेमे अधिक सजीव हुई है। अन्तर-व्यथासे पीडित मेवाडकी मेदिनीका कृश शरीर वहाकी भौगोलिक स्थिति का सजीव चित्र है। ___ मघवा गणीके स्वर्गवासके समय कालुगणीके मनोभावोका आकलन करते हुए आपने गुरु-शिष्यके मधुर सम्बन्ध एवं विरह. वेदनाका जो सजीव वर्णन किया है, वह कविकी लेखनीका अद्भुत चमत्कार है: * "नेहड़ला री क्यारी म्हारी, मूकी निराधार । इसडी का कीधी म्हारा, हिवडे रा हार ।। चितड़ो लाग्यो रे, मनडो लाग्यो रे । खिण खिण समरू, गुरु थारो उपगार रे ।। किम बिसराये म्हारा, जीवन • आधार ॥ विमल विचार चारू, अव्वल आचार रे। कमल ज्यू अमल, हृदय अविकार ।। आज सुदि कदि नही, लोपी तुज कार रे । बह्यो बलि बलि तुम, मीट विचार ।। तो रे क्या पधारया, मोये मूको इह वार रे । स्व स्वामी रु शिष्य-गुरु, सम्बन्ध विसार ।। * काल यशोविलास ।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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