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________________ प्राचार्य श्री तुलमी नियमानुवर्ती रहे। औराके द्वारा नहीं, अपने आप अनुशासन मे चलना सीखे। चलानेसे पशु भी चलता है। किन्तु मनुष्य पशु नहीं है। ____ आजका संसार राजनीतिमय बन रहा है । जहाँ कही सुनिये, उसीकी चर्चा है, मनुष्यको बहिर्मुखी दृष्टिने उसे सत्ता और अधिकारोंका लालची बना दिया। इसलिए वह और सब बातोंको भलाकर मारा-मारा उसीके पीछे फिर रहा है। इसीसे चारो ओर अशान्तिको ज्वाला धधक रही है। आप सुम्बके मार्गमे राजनीति के एकाधिकारको वाधक मानते है :__“राजनीति लोगोंके जरूरतकी वस्तु होती होगी किन्तु सबका हल उसीमे ढूंढना भयंकर भूल है। आजकी राजनीति सत्ता और अधिकारोंको हथियानेकी नीति वन रही है। इसीलिए उस पर हिंसा हावी हो रही है। इससे संसार सुखी नहीं होगा । संसार सुखी तब होगा, जब ऐसी राजनीति घटेगी, प्रेम, समता और भाईचारा बढ़ेगा।" ___ हम धर्मसे चले और व्यवहारके मार्गमे घूम फिरकर वापिस मूलकी जगह लौट आये । यहींपर हमे आचार्यश्रीकी आध्यात्मिक जागृतिका आभास होता है। इससे वह भ्रान्त धारणा भी निर्मल होगी, जैसा कि लोग समझते है-धर्माचार्य उन्हे वर्तमान जीवन के कामकी बातें नहीं बताते।। अवश्य ही निवृत्ति प्रवृत्तिसे आगे है। किन्तु इनका आपसमे सर्वथा विरोध है, यह बात नहीं। प्रवृत्ति निवृत्तिके सहारे सत्
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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