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________________ रचनाका आरम्भ' देखते ही स्पष्ट हो जाता है। 'सकलाहत्-प्रतिष्ठान' की। रचना उन्होने समन्तभद्रके 'स्वयम्भूस्तोत्र' के लघु अनुकरणके रूपमें की है, परन्तु अयोगव्यवच्छेद और अन्ययोगव्यवच्छेद नामकी वत्तीसियोमें तो सिद्धसेनकी कृतियोमसे ही मुख्यत' प्रेरणा प्राप्त की है। उन्होन सिद्धसेनको श्रेष्ठ कवि कह। है, यह उनपर पड़े हुए वत्तीसियोके प्रभावको सूचित करता है। ____ यशोविजयजी अन्तमे जैन-साहित्यका विविध रूपसे पूर्ति एव असाधारण उपासना करनेवाले वाचक यशोविजयजी आते है । सिद्धसेनसे लगभग बारह सौ वर्ष पीछे होने पर भी सिद्धसेनके साक्षात् विद्यामिप्यापके सम्मानकी योग्यता रखनेवाले यही यशोविजयजी है। सिद्धसेनकी कृतियोके अवलोकनकार एव अभ्यासी अनेक हुए होगे, परन्तु उनकी कृतियोका गहर। और सर्वागीण पान जितना इन्होने किया है, उतना किसी दूसरेने किया हो, ऐसा निश्चयपूर्वककह नेके लिए हमारे पास प्रमाण नहीं है। प्राकृत, संस्कृत और गुजरातीमे विपुल साहित्य रचनेवाले इन वाचकवरेण्यने तीनो भाषाकी अपनी अनेक कृतियोकी रचना केवल सन्मतिके तीन काण्डोके आधार पर ही की है। समिति के सारे काण्डके काण्ड लेकर इन्होने स्वतत्र प्रकरण लिखे है और दूसरे अनेक प्रकरणोमे सन्मतिके विचार गय लिये है। इन वाचकवर्यकी सभी कृतियोम मिलनेवाली और उनके द्वारा विवृत समितिको गाथाओको जोड करें, तो ऐसा ही कहना पडेगा कि वाचक यशोविजयजीने प्राय समन सन्मतिका विवरण और उसका उपयोग किया है। यह बात सन्मति के सटीक संस्करणके भा० ५ मे तीसरा परिशिष्ट देखनेसे स्पष्ट हो जायगी। वाचक यगोविजयजीके कौन-कौनसे अन्य सन्मतिके किस-किस काण्डपर कितने अवलम्बित है, इसका ५७८ दर्शन तो उनके उक्त परिशिष्टात अन्य सागोपारी देखने से ही हो सकता है, फिर भी उस परिशिष्टका सिर्फ अवलोकन ही અભ્યાસિયો યશોવિનયની સન્મતિ-વિષયના અભ્યાસ પ્રતીતિ કરાવે છે यशोविजयजी द्वारा सन्मतिकी गायाओका क्रमसे या उत्क्रमसे किया गया विवरण और उसपर प्रदर्शित किये गये भाव इक करके सन्मतिकी सक्षिप्त टीकाका। १. 4 सिनस्तुतयो महार्या प्रशिक्षितालापकला व चैषा । तथापि यूथाधिपतेः पथस्थः स्खलदगतिस्तस्य शिशुन शोच्य.॥ हेमचन्द्रको अन्ययोगव्यवच्छेद त्रिशिकाके व्याख्याकार मल्लिषणका भी मानना है कि प्रा. हेमचन्द्रन स्तुतियोके विषय सिद्धसेनका अनुकरण किया है। देखो स्याहादमजरी पृ० २।
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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