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________________ प्रस्तावना न मूलकारका परिचय सन्मतित मूलके का सिद्धसेनसूरि है। सिद्धसेन नामके अनेक' आचार्य न-पर-परामें हुए हैं। उन सबमे जो "दिवाकर'के उपनामसे प्रख्यात है, वही द्धिसेन सन्मतितकं मूलके का है । दिवाकरसे पहले सिद्धसेन नामके कोई चार्य श्वेता वर या दिगम्बर-सम्प्रदाय हुए है, ऐसा अभीतके निश्चित रूप से शात नहीं हुआ है। १. समय सिद्धसेन दिवाकर कप हुए, इसके सुनिश्चित एक निविवाद कहा जा सके, इतने साधन अबतक उपल०३ नही हुए है। उनका समय निश्चित करने के लिए हमारे पास इस समय इतने साधन हैं ( १ ) उनकी कृतियाँ, ( २ ) जैनपरम्परा, जिसमें अनेक कयानकोका समावेश होता है, तथा ( ३) निश्चित સમયવારે એવો દારા યેિ માયે ડવ છે ___अन्तिम साधनको हम सर्वप्रथम उपयोग करे। विक्रमकी आठवी शताब्दीके उत्तरार्धमे होनेवाले आ० हरिभद्रने पचवस्तु मूल एवं टीकामे 'समय' मथवा 'समिति'को उल्लेख किया है और उसके कर्ताक रूपमें सिद्धसेन दिवाकरका नाम लिया है, इतना ही नहीं, वह उनका श्रुतकेवली जैसे असाधारण विशेषण सारा निर्देश भी करते हैं । जैसे कि भण्णइ एगतेण महाण कमवाय जो इहो । ण य णो सहाववाओ सुअवलिया जो मणि ।। १०४७ ।। आयरियसिद्धणेण सम्मईए पइटिअजसेण । दूसमणिसादिवागरकप्पत्तणयो तदखे ॥ १०४८॥ जीव १. जन-प्रन्यापली पृष्ठ ५४, ७५, ७९, ९४, १२७, १३८, २७३, (ती) हि २७७, २८१, २८९, २९२ । यमपि प्रकारो २. देखो 'जन साहित्य संशोधक' भाग १, पृष्ठ ५३ तय' प्रस्तावना पृष्ठ २॥ -~शापूणि पृ० १६.
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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