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________________ ६ सन्मति-प्रकरण "केवली णं भंते ! इमं रयणप्पभ पुढवि आगारोहिं हेतू हि उवमाहि दिद्रुतहिं वण्णेहि सठाणेहि पमाणेहिं पडोयारेहिं, ज समयं जाणति त समयं पास ? ज समयं पास तं समय जाणइ ?" "गोयमा । तो तिणद्वे समढे।" "से कढण भत! एव पति केवली ण इमं रयणप्पभं पुढवि आगारहिं ज समय जाणति नो तं समय पासति, ज समय पासति नो त समय जाणति ?" "गोयमा ! सागार से जाणे भवति, अणागार से दसणे भवति । से तेणटेण जाव णो त समय जाणति । एव जीव अहे सत्तम । एवं सोहम्मक५ जाव अच्चुय गेविज्जगविमाणा अणुत्तरविमाणा ईसी- } ५०भार पुढवि परमाणुपोग्गलं दुपदेसियं खध जाव अणतपदसिय ) खधं ॥" प्रज्ञापना पद ३०, सूत्र ३१९, पृष्ठ ५३१ प्रश्न हे भगवन् ! केवली नाकार, हेतु, उपमा, दृष्टान्त, वर्ण, संस्थान, प्रमाण और प्रत्यवतारोके द्वारा इस रत्नप्रभा पृथ्वीको जिस समय जानता है उस समय देखता है ? और जिस समय देखता है उस समय जानता है ? उत्तर हे गौतम | यह अर्थ समर्थ नही है। प्रश्न हे भगवन् । केवली आकार आदि द्वारा इस रत्नप्रभा पृथ्वीको जिस समय जानता है उस समय देखता नही है और जिस समय देखता है उस समय जानता नही है, इसका क्या कारण ? ___उत्तर हे गौतम | उसको ज्ञान साकार है और उसका दर्शन निराकार है। अत वह जिस समय जानता है उस समय देखता नही है, और जिस समय देखता है उस समय जानता नही है। इस प्रकार अध सप्तमी पृथ्वी तक, सौधर्म कल्पसे लेकर ईपत्प्रामारपृथ्वी तक तया परमाणु पुद्गलसे अनन्तप्रदेश स्कन्ध तक जाननका मोर देखनका क्रम समझना चाहिए । भगवतीसूत्रके १४वे शतकके १०वे उद्देशमे तथा १८वें शतक ८वे उद्देशमे इस प्रकार के अनेक सूत्र आते है।
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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