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________________ प्रथम काण्ड : गाथा - ६ अर्थ नाम, स्थापना और द्रव्य ये द्रव्यास्तिकके निक्षेप है और भाव तो पर्यायास्तिक नयकी प्ररूपणा है । यही परमार्थ है । विवेचन યહાઁ નિક્ષેપને અવશ્ય હોનેવાલે પ્રર્જોર બૌર પુનમેં નયા વિમાન ये दो बाते कही गयी है । निक्षेपके जो कमसे कम चार प्रकार सर्वत्र सम्भावित हैं और किये जाते है वे ही यहाँ गिनाये गये हैं। किसी भी सार्थक शब्दको अर्थ विचारना हो तब वह कमसे कम चार प्रकारका ही हो सकता है । वे प्रकार शब्दवाच्य अर्थसामान्यके निक्षेप' विभाग कहलाते है । जो नाममात्रसे राजा हो वह नाम-राजा, राजाका जो चित्र या दूसरी कोई प्रतिकृति हो वह स्थापना राजा, जो आगे जाकर राजा होनेवाला हो अथवा जो इस समय राजा न हो, किन्तु पहले कभी राजा रहा हो वह द्रव्य-राजा, और जो इस समय राजपदका अनुभव करता हो वह भाव-राजा । राजा शब्दके ये चार निक्षेप हुए । - इनमे से प्रथमके तीन निक्षेपोमे किसी-न-किसी प्रकारका अभेद अर्थात् द्रव्य હોનેસે કે તીનો વ્રવ્યાસ્તિ નય વિષય માને યે હૈં, ચૌડ માનિક્ષેપમેં મેવ अर्थात् पर्याय होनेसे वह पर्यायास्तिक नयका विषय माना गया है । जिस व्यक्तिका नाम राजा हो उस व्यक्तिको देखकर और उसके नामके साथ उसका अभेद करके लोग कहते है कि 'यह राजा है।' इसी प्रकार चित्रको देखकर और उसके साथ असली राजाका अभेद करके लोग चित्रको उद्दिष्ट करके कहते हैं कि 'यह राजा १ शब्द का अर्थ करनेमें गोलमाल न हो और वक्ताका अभिप्राय ठीक-ठीक समझमें आ जाय, इस भावनासे नियुक्तिकारोंके समय में निक्षेपका विचार स्पष्टरूपसे शास्त्रमें गूँथ लिया गया है। किसी भी शब्द या वाक्यका अर्थ करते समय उस शब्द के जितने अर्थविभाग शक्य हों, उन्हें सूचित करके उनमें से प्रस्तुतमें वक्ताको कौन-सा अर्थ विवक्षित है और कौनसा अर्थ संगत है, यह निश्चित करनेमें ही निक्षेपविषयक विचारसरणीकी उपयोगिता है। उद्राहरणार्थ 'जीवके गुण शान आदि हैं' ऐसा एक वाक्य है । इसमें सन्देह हो सकता है "कि 'जीव' शब्द से यहाँ क्या विवक्षित है ? उस समय विचारक हमें यह बतलाता है कि यहाँ जीव नामका कोई व्यक्ति, जीवकी स्थापना या द्रव्यजीव विवक्षित नहीं है, परन्तु चैतन्य धारण करनेवाला तत्त्व अर्थात् भावजीव ही विवक्षित है और वही प्रस्तुत वाक्य में सगत है। इस तरह प्रत्येक शब्द के अर्थके बारेमें गडबढ़ उपस्थित होनेपर निक्षेपवादी स्पष्टरूपसे विवक्षित अर्थ सूचित करके अर्थभ्रान्ति दूर कर सकता है, और यही निक्षेपके विचारकी उपयोगिता है । अनेकार्थक शब्द आने पर विवक्षित अर्थका निर्णय करने के लिए बहुतसे उपाय मलकारशास्त्र में बताये गये है, किंतु जैन नियुक्तिग्रन्योंके अतिरिक्त किसी मो वैदिक या बौद्ध ग्रन्थर्मे निक्षेप जैसी विचारसरणी देखने में नहीं आती ।
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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