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________________ १२० - जव नियुक्ति केवल छठी शताब्दीके भद्रवाहकी पूर्ण रचना नही है, तव નિર્યુક્તિ સમયો જેર ઉપયોગ મવવો છઠી શતાવીને સાથ નોડનાં एकागिता है। ___अगर हम भगवती, पनवणा आदि मूल आगमोको देखे, तो स्प५८ जान पडेगा। कि उक्त आगमोमे ही उपयोगके क्रमवादका स्पष्ट आदिक वर्णन है। आचार्य कुन्दकुन्दके ग्रन्योमे निस्सन्देह युगपद् उपयोगद्वयका स्पष्ट वर्णन है; परन्तु यह विचार कितना ही पुराना क्यो न माना जाय, फिर भी यह आगमगत क्रमिक उपयोगद्वयके विचार के बाद कभी जैन परम्परामे अस्तित्वमे आया है। सिद्धसेन दिवाकरने सन्मतिम उपयोगाभेदवादका जो सवल स्थापन किया है और जो आगमिक क्रमवादी सूत्रों को अपने पक्षमे घटाया है, वह सूचित करता है कि सिद्धसेन उपल० आगमोको प्रमाणरूपसे मानते रहे । इसीसे उन्होने तकवलसे सूत्रोंका अर्थान्तर सूचित किया, न कि सूत्रीका अस्वीकार या अप्रामाण्य । सिद्धसेन और उनको परिस्थिति अनेकान्तदृष्टिमूलक सत्यके चाहक एव शास्त्रीके सतत व्यासगी श्रीयुत मुख्तारजीके द्वारा बत्तीसियोके कुछ पधोका अर्थ करनेमे जाने-अनजाने जो वि५यास हुआ है, उसे भी यहाँ सक्षेपमे दरसा देना क्रम एव न्यायप्राप्त है । __ पचम द्वात्रिशिकाके छ पद्यमे स्तुतिकारने भगवान् महावीरको 'यशोदाप्रिय' विशेषणसे सम्बोधित किया है । इसपर श्री मुख्तारजी कहते है कि श्वेताम्बरी परम्पराम भी महावीरका विवाह मान्य नहीं है, फिर स्तुतिकार सिद्धसेन श्वेताम्वर परम्परा के अनुसार महावीरको 'यशोदाप्रिय' कसे कह सकते हैं । अच्छा, तो फिर इस स्तुतिकारने 'यशोदप्रिय' कसे कहा, क्योकि आपके मतसे दिगम्बर और श्वेताम्वर परम्पराम महावीर कुमार अर्थात् अविवाहित ही है । क्या आप यह कहना चाहते है कि स्तुतिकार महावीरको खामख्वाह झूठे ही 'यशोदाप्रिय विशेषणसे सम्बोधित करते है ? अगर मुख्तारजी श्वेताम्वर परम्परामे प्रचलित મવીર વિવાહ માન્યતાવારી કન્ટેસ્વોપર મી ધ્યાન હેતે, નો તિહાસ विद्वान् प० कल्याणविजयीको 'श्रमण भगवान् महावीर' नामक पुस्तक (पृ० १२ ) मे तथा प० श्री दलसुख मालपणियाद्वारा सम्पादित स्थानाग-समपायागके टिप्पिणो ( पृ० ३२९-३० और ७३५-८ ) मे निदिष्ट है, तो उस पद्य के अर्थमे उन्हें कोई विरोध नही दिखाई देता। दूसरी द्वानिशिकाके तीसरे पद्यके अर्थमे विरोव बतलाने के लिए उन्होने
SR No.010844
Book TitleSanmati Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi, Bechardas Doshi, Shantilal M Jain
PublisherGyanodaya Trust
Publication Year1963
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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