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________________ ३१२ . -- रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला - [अ० ३, गा० २९प्रियत्वलक्षणानुरागशून्यत्वात् । अयथालब्धस्तु विशेषप्रियत्वलक्षणानुरागसेव्यमानत्वेन प्रसह्य हिंसायतनीक्रियमाणों न युक्तः । विशेषप्रियत्वलक्षणानुरागसेवकत्वेन न च युक्तस्य भिक्षा चरणेनैवाहारो युक्ताहारः तस्यैवारम्भशून्यत्वात् । अभैक्षाचरणेन त्वारम्भसंभवात्प्रसिद्धहिंसायतनत्वेन न युक्तः। एवंविधाहारसेवनव्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य दिवस एवाहारो युक्ताहारः तदेव सम्यगवलोकनात् । अदिवसे तु सम्यगवलोकनाभावादनिवार्यहिंसायतनत्वेन न युक्तः । एवंविधाहारसेवनव्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य अरसापेक्ष एवाहारो युक्ताहारस्तस्यैवान्तःशुद्धिसुन्दरत्वात् । रसापेक्षस्तु अन्तरशुद्ध्या प्रसह्य हिंसायतनीक्रियमाणो न युक्तः। अन्तरशुद्धिसेवकत्वेन न च युक्तस्य अमधुमांस एवाहारो युक्ताहारः तस्यैवाहिंसायतनत्वात् । समधुमांसस्तु हिंसायतनत्वान्न युक्तः । एवंविधाहारसेवनव्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य मधुमांसमत्र हिंसायतनोपलक्षणं तेन समस्तहिंसायतनशून्य एवाहारो युक्ताहारः ॥ २९ ॥ धनानां युक्ताहारः कस्मादिति चेत् । चिदानन्दैकलक्षणनिश्चयप्राणरक्षणभूता रागादिविकल्पोपाधिरहिता या तु निश्चयनयेनाहिंसा तत्साधकरूपा बहिरङ्गपरजीवप्राणव्यपरोपणनिवृत्तिरूपा द्रव्याहिंसा च सा द्विविधापि तत्र युक्ताहारे संभवति । यस्तु तद्विपरीतः स युक्ताहारो न भवति । कस्मादिति चेत् । तद्विलक्षणभूताया द्रव्यरूपाया हिंसाया सद्भावादिति ॥ २९ ॥ जो विशेष इन्द्रियस्वादके अनुरागसे किया जावे, तो वह हिंसाका स्थान होता है, इसकारण निषेध योग्य है, यदि संयम-साधक शरीरकी स्थितिके निमित्त लिया जावे, तो वह योग्य है । भिक्षावृत्तिसे जो आहार लिया जावे, तो आरम्भ नहीं करना पड़ता, और यदि भिक्षावृत्तिसे नहीं लिया जावे, तो हिंसाका कारण आरम्भ अवश्य होता है । इसलिये वह निपिद्ध है, भिक्षावृत्ति योग्य है, तथा राग भावसे अंतरङ्गकी अशुद्धतासे भिक्षावृत्तिसे भी ग्रहण करना अयोग्य आहार कहा जाता है। संयम साधक शरीरकी स्थितिके लिये भिक्षा कर लेना योग्य है । दिनमें अच्छी तरह दिखलाई देता है, दयाका पालन होता है, इसलिये दिनका आहार योग्य है । रात्रिमें अच्छी तरह नहीं दिखलाई देता है । इस कारण अवश्य हिंसा होती है, इसलिये रात्रिभोजन निषिद्ध है, और दिनका भी आहार सराग परिणामोंसे करना अयोग्य है, संयम-साधनके निमित्त योग्य है । जो आहार सरस होगा उससे अवश्य अंतरङ्ग अशुद्ध होगा, ऐसा होनेपर हिंसाका कारण हो जायगा, इसलिये सरस आहार योग्य नहीं, नीरस आहार योग्य है । मधु मांस युक्त आहार हिंसाका स्थानक है, इसलिये निषेध किया गया है, इनसे रहित आहार योग्य है, और जिन वस्तुओंमें मधु मांसका दोष लगता हो, तथा हिंसा होती होवे, ऐसी वस्तुओंका आहार योग्य नहीं है, निःपाप आहार योग्य है। इससे यह बात सिद्ध हुई, कि जो आहार एक वक्त लिया जावे, पेट भरके न लिया जावे, भिक्षावृत्तिसे युक्त यथालव्ध दिनमें नीरस मांसादि दोष रहित लिया जावे, वह आहार योग्य है, इससे अन्य रीतिसे
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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