SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 349
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०२ - रायचन्द्रजैनशास्त्रमाला - [अ० २, गा० ५०सर्तव्यः, स च समयपदार्थ एव । तस्य खल्वेकस्मिन्नपि वृत्त्यंशे समुत्पादप्रध्वंसौ संभवतः । यो हि यस्य वृत्तिमतो यस्मिन् वृत्त्यंशे तद्वृत्त्यशविशिष्टत्वेनोत्पादः स एव तस्यैव वृत्तिमतस्तस्मिन्नेव वृत्त्यंशे पूर्ववृत्त्यंशविशिष्टत्वेन प्रध्वंसः। यद्येवमुत्पादव्ययावेकस्मिन्नपि वृत्त्यंशे संभवतः समयपदार्थस्य कथं नाम निरन्वयत्वं, यतः पूर्वोत्तरवृत्त्यंशविशिष्टत्वाभ्यां युगपदुपात्तप्रध्वंसोत्पादस्यापि स्वभावेनाप्रध्वस्तानुत्पन्नत्वादवस्थितत्वमेव न भवेत् । एवमेकस्मिन् वृत्त्यंशे समयपदार्थस्योत्पादव्ययध्रौव्यवत्त्वं सिद्धम् ॥ ५० ॥ प्रध्वंसस्तदाधारभूताङ्गुलिद्रव्यत्वेन ध्रौव्यमिति द्रव्यसिद्धिः । अथवा खस्वभावरूपसुखेनोत्पादस्तस्मिन्नेव क्षणे तस्यैवात्मद्रव्यस्य पूर्वानुभूताकुलत्वदुःखरूपेण प्रध्वंसस्तदुभयाधारभूतपरमात्मद्रव्यत्वेन ध्रौव्यमिति द्रव्यसिद्धिः । अथवा मोक्षपर्यायरूपेणोत्पादस्तस्मिन्नेव क्षणे रत्नत्रयात्मकनिश्चयमोक्षमार्गपर्यायरूपेण प्रध्वंसस्तदुभयाधारपरमात्मद्रव्यत्वेन ध्रौव्यमिति द्रव्यसिद्धिः । तथा वर्तमानसमयरूपपर्यायेणोत्पादस्तस्मिन्नेव क्षणे तस्यैव कालाणुद्रव्यस्य पूर्वसमयरूपपर्यायेण प्रध्वंसस्तदुभयाधारभूताङ्गुलिद्रव्यस्थानीयेन कालाणुद्रव्यरूपेण ध्रौव्यमिति कालद्रव्यसिद्धिरित्यर्थः ॥५०॥ अथ पूर्वोक्तसमीप मंद गतिसे जाता है, वहाँ समयपर्याय उत्पन्न होता है। इस कारण पूर्वका नाश और आगेकी पर्यायकी उत्पत्ति एक समय होती है। यहाँपर कोई प्रश्न करे, कि कालद्रव्यमें उत्पाद-व्यय होना क्यों कहते हो, समयपर्यायको ही उत्पाद व्यय सहित होना मान लेना चाहिये ? तो इसका समाधान इस तरहसे है, कि-जो समयपर्यायका ही उत्पाद व्यय माना जावे, तो एक समयमें उत्पाद व्यय नहीं बन सकते, क्योंकि उत्पाद-व्यय ये दोनों प्रकाश अंधकारकी तरह आपसमें विरोधी हैं। इस कारण एकपर्याय समयका उत्पादव्यय एक कालमें किस तरह हो सकता है ? नहीं हो सकता । यदि ऐसा कहो, "कि एकसमयमें क्रमसे समयपर्यायका उत्पाद व्यय होता है," तो ऐसा भी ठीक नहीं मालूम होता, क्योंकि समय अत्यंत सूक्ष्म है, उसमें क्रमसे भेद हो ही नहीं सकता। इसी लिये एक समयमें समयपर्यायका उत्पाद व्यय नहीं संभव होता है । कालाणुरूप द्रव्यसमयको अंगीकार करनेसे उत्पाद व्यय एक ही समयमें अच्छी तरह सिद्ध होते हैं । इस कारण कालाणुरूप द्रव्यसमय ही अविनाशी ध्रुवद्रव्य स्वीकार करना चाहिये। उस द्रव्यकालागुके एक समयमें पूर्वसमयपर्यायका नाश और उत्तरसमयपर्यायका उत्पाद होता है, तथा । द्रव्यपने ध्रौव्य है। इस प्रकार द्रव्यके ध्रौव्य माननेसे एक समयमें उत्पाद, व्यय, प्रौव्य अच्छी तरह सिद्ध होते हैं । यदि कालाणुद्रव्य न माना जावे, तो ये उत्पादादि तीनों भाव सिद्ध नहीं हो सकते । जैसे हाथकी उँगली टेढ़ी करनेसे उस उँगलीके पूर्व सीधे पर्यायका नाश होता है, वक्र (टेढ़ा ) पर्यायका उत्पाद होता है, और अंगुलीपने ध्रौव्य है, ... प्रकार कालद्रव्यके उत्पाद, व्यय, और ध्रौव्य जानने चाहिये ।। ५० ।। आगे सब ई
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy