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________________ ४४, *२.] ar द्रव्येण प्रदेशमात्रत्वादप्रदेशत्वेऽपि द्विप्रदेशादिसंख्येयासंख्येयानन्तप्रदेशपर्यायेणानवधारितप्रदेशत्वात्पुद्गलस्य, सकललोकव्याप्यसंख्येयप्रदेश प्रस्ताररूपत्वात् धर्मस्य, सकललोकव्याप्यसंख्येयप्रदेश प्रस्ताररूपत्वादेवाधर्मस्य, सर्वव्याप्यनन्तप्रदेश प्रस्ताररूपत्वादाकाशस्य च प्रदेशवत्त्वम् । कालाणोस्तु द्रव्येण प्रदेशमात्रत्वात्पर्यायेण तु परस्परसंपर्कासंभवादप्रदेशत्वमेवास्ति । ततः कालद्रव्यमप्रदेशं शेषद्रव्याणि प्रदेशवन्ति ॥ ४३ ॥ S प्रवचनसारः अथ कामी प्रदेशिनोऽप्रदेशाश्चावस्थिता इति प्रज्ञापयतिलोगालोगेसु भो धम्माधम्मेहि आददो लोगो । सेसे पहुच कालो जीवा पुण पोग्गला सेसा ॥ ४४ ॥ १९१ देहमात्रेऽपि निश्चयेन लोकाकाशप्रमिता संख्येयप्रदेशत्यम् । धर्माधर्मयोः पुनरवस्थितरूपेण लोकाकाशप्रमित|संख्येयप्रदेशत्वम् । स्कन्धाकारपरिणतपुद्गलानां तु संख्येया संख्येयानन्तप्रदेशत्वम् । किंतु पुद्गलव्याख्यानेन प्रदेशशब्देन परमाणवो ग्राह्या, न च क्षेत्र प्रदेशाः । कस्मात्पुद्गलानामनन्तप्रदेश क्षेत्रे ऽवस्थानाभावादिति । परमाणोर्व्यक्तिरूपेणैकप्रदेशत्वं शक्तिरूपेणोपचारेण बहुप्रदेशत्वं च । आकाशस्यानन्ता इति । णत्थि पदेस त्ति कालस्स न सन्ति प्रदेशा इति कालस्य । कस्माद्द्रव्यरूपेणैकप्रदेशत्वात् परस्परसंबन्धाभावात्पर्यायरूपेणापीति ॥ ४३ ॥ अथ तमेवार्थं द्रढयति दाणि पंचदवाणि उज्झियकालं तु अत्थिकाय त्ति । भण्णं काया पुण बहुपदेसाण पचयत्तं ॥ * २ ॥ दाणि पंचदचाणि एतानि पूर्वसूत्रोक्तानि जीवादिपद्रव्याण्येव उज्झिथ कालं तु भगवान् ने कहा है, अर्थात् कालद्रव्य प्रदेशमात्र होनेसे अप्रदेशी है, भावार्थ-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, ये पाँच द्रव्य अनेक प्रदेशवाले हैं, इस कारण प्रदेशी कहे जाते हैं । उनमें जीवद्रव्य तो लोकाकाशके प्रमाण असंख्यात प्रदेशवाला है, संकोच विस्तार स्वभाव होने पर भी असंख्यात प्रदेशोंसे कम वढ़ नहीं हो सकता, पुद्गलद्रव्य परमाणुद्रव्यसे तो प्रदेशमात्र है, इसलिये अप्रदेशी भी है, परंतु परमाणु में मिलनेकी शक्ति होनेसे दो परमाणु से लेकर संख्यात असंख्यात - अनंत परमाणुओंके स्कंधतक प्रदेशभेद होनेके कारण संख्यातप्रदेशी असंख्यातप्रदेशी अनंतप्रदेशी जानना चाहिये । व्यवहारनयसे धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य लोकाकाश प्रमाण हैं, इस कारण असंख्यात प्रदेशी हैं । आकाशद्रव्य सर्वव्यापक होनेसे अनंत प्रदेशी है । काल अणुद्रव्य होनेसे प्रदेशमात्र है, इसलिये अप्रदेशी है, और उस कालाणु आपसमें मिल जानेकी शक्ति न होनेसे पुद्गल परमाणुकी तरह उपचारसे भी प्रदेशी नहीं हो सकता । इससे यह बात सिद्ध हुई, कि पॉच द्रव्य प्रदेशवाले हैं, और कालद्रव्य केवल अप्रदेशी है ॥ ४३ ॥ आगे प्रदेशी और अप्रदेशी द्रव्य (
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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