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________________ १०.] --प्रवचनसारः. इह हि यो नाम वस्तुनो जन्मक्षणः स जन्मनैव व्याप्तत्वात् स्थितिक्षणो नाशक्षणश्च न भवति । यश्च. स्थितिक्षणः स खलूभयोरन्तरालदुर्ललितत्वाजन्मक्षणो नाशक्षणश्च न भवति । यश्च नाशक्षणः स तूपाद्यावस्थया च नश्यतो जन्मक्षणः स्थितिक्षणश्च न भवति । इत्युत्पादादीनां वितळमाणः क्षणभेदो हृदयभूमिमवतरति, अवतरत्येवं यदि द्रव्यमात्मनैवोत्पद्यते आत्मनैवावतिष्ठते आत्मनैव नश्यतीत्यभ्युपगम्यते । तत्तु नाभ्युपगतम् । पर्यायाणामेवोत्पादादयः कुतः क्षणभेदः । तथाहि-यथा कुलालदण्डचक्रचीवरारोप्यमाणसंस्कारसन्निधौ य एव वर्धमानस्य जन्मक्षणः स एव मृत्पिण्डस्य नाशक्षणः स एव च कोटिद्वयाधिरूढस्य मृत्तिकात्वस्य स्थितिक्षणः । तथा अन्तरङ्गबहिरङ्गसाधनारोप्यमाणसंस्कारसन्निधौ य एवोत्तरपर्यायस्य जन्मक्षणः स एव प्राक्तनपर्यायस्य नाशक्षणः स एव च कोटिद्वयाधिरूढस्य द्रव्यत्वस्य स्थितिक्षणः। यथा च वर्धमानमृत्पिण्डमृत्तिकात्वेषु प्रत्येकवीन्युत्पादव्ययध्रौव्याणि त्रिस्वभावस्पर्शिन्यां मृत्तिकायां सामस्त्येनैकसमय एवावलोक्यन्ते, तथा उत्तरप्राक्तनपर्यायद्रव्यत्वेषु प्रत्येकवर्तीन्यप्युत्पादव्ययएक्कम्मि चेव समये अङ्गुलिद्रव्यस्य वक्रपर्यायवत्संसारिजीवस्य मरणकाले ऋजुगतिवत् क्षीणकषायचरमसमये केवलज्ञानोत्पत्तिवदयोगिचरमसमये मोक्षवच्चेत्येकस्मिन्समय एव । तम्हा दवं खु तत्तिदयं यस्मात्पूर्वोक्तप्रकारेणैकसमये भङ्गत्रयेण परिणमति तस्मात्संज्ञालक्षणप्रयोजनादिक्योंकि जो समय उत्पादका है, वह उत्पाद ही से व्याप्त है, वह ध्रौव्य-व्ययका समय नहीं है।जो ध्रौव्यका समय है, वह उत्पाद-व्ययके मध्य है, इससे भी जुदा ही समय है। और जो नाशका समय है, उस समय उत्पाद-ध्रौव्य नहीं हो सकते। इस कारण यह समय भी पृथक् है। इस प्रकार इनके समय पृथक् पृथक् संभव होते हैं; सो इस कुतर्कका समाधान आचार्य महाराज इस प्रकार करते हैं कि, "जो द्रव्य आपही उत्पन्न होता, आप ही स्थिर होता, और आप ही नष्ट होता, तो अवश्य ही तीन समय होते, परंतु ऐसा नहीं है" । पर्यायसे उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य होते हैं, इस कारण एक ही समयमें सधते हैं । जैसे दंड, चक्र, सूत, कुंभकारादिके निमित्तसे घटके उत्पन्न होनेका जो समय है, वही मृत्पिण्डके नाशका समय है, और इन दोनों अवस्थाओंमें मृत्तिका अपने स्वभावको नहीं छोड़ती है, इसलिये उसी समय ध्रुवपना भी है। इसी प्रकार अंतरंग-बहिरंग कारणोंके होने पर आगामी पर्यायके उत्पन्न होनेका जो समय है, वही पूर्व पर्यायके नार्शका समय है, और .. इन दोनों अवस्थाओंमें द्रव्य अपने स्वभावको छोड़ता नहीं है इसलिये उसी समय ध्रुव है। जैसे मृत्तिका द्रव्यमें घट, मृत्पिड और मृत्तिकाभाव इन पर्यायोंसे एक ही समयमें उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य हैं, उसी प्रकार पर्यायोंके द्वारा द्रव्यमें भी जानना चाहिये । पूर्व पर्यायका नाश, उत्तर पर्यायका उत्पाद, और द्रव्यत्वसे ध्रुवता, ये तीन भाव एक ही सम' यमै सधते हैं। हाँ, यदि द्रव्य ही उपजता, विनशता, तो एक समय अवश्य ही नहीं
SR No.010843
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorA N Upadhye
PublisherManilal Revashankar Zaveri Sheth
Publication Year1935
Total Pages595
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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