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________________ ता1 श्रीमद्जीके कितने ही निजी अभिप्राय वयक्रममें आ जाते हैं। उसके अतिरिक्त उनके आभ्यंतर परिणामावलोकन (Introspection) सम्बन्धी तीन संस्मरण-पोथियाँ (Memo-Books) प्राप्त हुई हैं, जिन्हें यहाँ देते हैं । संस्मरणपोयियोंमें स्व-निरीक्षणसे उद्भूत पृथक् पृथक् उद्गार स्व-उपयोगार्थ क्रमरहित लिखे गये हैं । इनमेंसे दो विदेशी गठनकी है और एक देशी गठनकी है । पहली दोमेंसे एककी जिल्दपर अंग्रेजी वर्प १८९० का और दूसरीमें १८९६ का कैलेण्डर' है, देशीमें नहीं है । विदेशी दोनोंका कद ७४४३ इञ्च है, और देशीका कद ६१४ ४ इञ्च है । १८९० वालीमें १००, १८९६ वालीमें ११६, और देशीमें ६० पन्ने (Leavcs) हैं । इन तीनोंमें प्रायः एक लेख भी क्रमवार नहीं है। जैसे कि १८९० वाली संस्मरण-पोथीमें लिखनेका आरम्भ, दूसरे पन्ने (तीसरे पृष्ठ)से 'सहज' इस शीर्षकके नीचेका लेख देखते हुए हुआ लगता है। इस प्रारम्भलेखकी शैली देखते हुए वह अंग्रेजी वर्ष १८९० अथवा विक्रम संवत् १९४६ में लिखा हो ऐसा संभव है । यह प्रारंभ लेख दूसरे पन्ने-तीसरे पृष्ठपर है, जब कि प्रारम्भ लेख लिखते समय पहला पृष्ठ छोड़ दिया है जो बादमें लिखा है । इसी तरह ५१ वें पृष्ठपर संवत् १९५१ के पौष मासकी मितीका लेख है । उसके बाद ६२वे पृष्ठपर संवत् १९५३ के फागुन वदी १२ का लेख है और ९७ वें पृष्ठपर संवत् १९५१ के माघ सुदी ७ का लेख है, जब कि १३० वें पृष्ठपर जो लेख है वह संवत् १९४७ का संभव है; क्योंकि उस लेखका विषय दर्शन-आलोचनारूप है, जो दर्शन-आलोचना संवत् १९४७ में सम्यग्दर्शन (देखें संस्मरण-पोथी पहलीका आंक ३१-'ओगणीससें ने सुडताळीसे समकित शुद्ध प्रकाश्युरे-') होनेसे पूर्व होना योग्य है। फिर १८९६ अर्थात् संवत् १९५२ वाली संस्मरण-पोथी लिखना शुरू करनेके बाद उसीमें लिखा हो ऐसा भी नहीं है; क्योंकि संवत् १९५२ वाली नयी संस्मरण-पोथी होते हुए भी १८९० (१९४६) वाली संस्मरण-पोथीमें संवत् १९५३ के लेख है । संवत् १९५२ (१८९६) वाली संस्मरण-पोथी पूरी हो जानेके वाद तीसरी-देशी गठनवालीका उपयोग किया है, ऐसा भी नहीं है; क्योंकि १८९६ वालीमें २७ पन्ने काममें लिये हैं, और उसके बाद सारे कोरे पड़े हैं। और तीसरी देशी गठनवालीमें बहुतसे लेख हैं। जैसे संवत् १८९६ वाली संस्मरणपोथीमें संवत् १९५४ के ही लेख हैं, वैसे देशी गठनवाली में भी है। इसी तरह १८९० वालीमें संवत् १९५३ के ही लेख होंगे और उसके बादके नहीं होंगे यह भी कह सकना शक्य नहीं है । और तीनों संस्मरण पोथियोंमें बीच-बीचमें बहुत पन्ने केवल कोरे पड़े हैं; अर्थात् यह अनुमान होता है कि जब जो संस्मरण-पोथी हाथ लगी, और खोलते ही जो पन्ना निकला उसमें कहीं-कहीं स्वनिरीक्षण अपने ही जाननेके लिये लिख डाला है। जो निजी लेख वयक्रममें हैं वे, और इन तीनों संस्मरण-पोथियोंके लेख स्वनिरीक्षणके लिये हैं; इसलिये हमने इन संस्मरणपोथियोंको 'आभ्यंतर-परिणाम-अवलोकन' इस शीर्षकसे यहाँ प्रस्तुत किया है । इस निरीक्षणमें उनकी दशा, आत्मजागृति और आत्ममंदता, अनुभव, स्वविचारके लिये लिखे हुए प्रश्नोत्तर, अन्य जीवोंके निर्णय करनेके उद्देश्यसे लिखे हुए प्रश्नोत्तर, दर्शनोद्वार-योजनाएँ इत्यादि संबंधी अनेक उद्गार हैं, जिनमें कितने ही निजी सांकेतिक भाषामें हैं।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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