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________________ ७८६ श्रीमद राजचन्द्र: किया है ऐसा नहीं कहा जायेगा और राजा उसे दंड नहीं देगा; उसी तरह मोक्षका शांतमार्ग बतानेसे पाप किस तरह लग सकता है ? : १४. ज्ञानीकी आज्ञासे चलने पर ज्ञानी गुरुने योग्यतानुसार क्रियासंबंधी किसीको कुछ बताया हो' और किसीको कुछ बताया हो, तो इससे मोक्ष (शांति) का मार्ग रुकता नहीं है । १५. यथार्थं स्वरूप समझे विना अथवा जो स्वयं कहता है वह परमार्थसे यथार्थ है या नहीं, यह जाने बिना, समझे बिना जो वक्ता होता है वह अनंत संसार बढ़ाता है । इसलिये जब तक यह समझनेकी शक्ति न हो तब तक मौन रहना अच्छा है । १६. वक्ता होकर एक भी जीवको यथार्थ-मार्ग प्राप्त करानेसे तीर्थंकरगोत्र बँधता है और उससे उलटा करनेसे महामोहनीय कर्म बँधता है । १७. यद्यपि हम आप सबको अभी ही मार्गपर चढ़ा दें, परन्तु वरतनके अनुसार वस्तु रखी जाती है । नहीं तो जिस तरह हलके बरतन में भारी वस्तु रख देनेसे बरतनका नाश हो जाता है; उसी तरह यहाँ . भी हो जाता है । क्षयोपशमके अनुसार समझा जा सकता है । १८. आपको किसी तरह डरने जैसा नहीं है, क्योंकि आपके सिरपर हमारे जैसे हैं, तो अब मोक्ष आपके पुरुषार्थंके अधीन है। यदि आप पुरुषार्थ करेंगे तो मोक्ष होना दूर नहीं । 'जिन्होंने मोक्ष प्राप्त किया वे सब महात्मा पहले हम जैसे मनुष्य थे; और केवलज्ञान प्राप्त करनेके बाद भी ( सिद्ध होनेसे पहले) देह तो वही की वही रहती है; तो फिर अब उस देहमेंसे उन महात्माओंने क्या निकाल डाला, यह समझ-. कर हमें भी उसे निकाल डालना है । इसमें डर किसका ? वादविवाद या मतभेद किसका ? मात्र शांतिसे ही उपासनीय है । .११. मोरबी, आषाढ़ सुदी १४, बुध, १९५६ १. पहलेसे आयुधको बाँधना और उसका उपयोग करना सीखा हों तो लड़ाईके समय वह काम आता है; उसी तरह पहलेसे वैराग्यदशा प्राप्त की हो तो अवसर आनेपर काम आती है; आराधना हो सकती है । २. यशोविजयजीने ग्रन्थ रचते हुए इतना उपयोग रखा था कि वे प्रायः किसी जगह भी चूके न थे। तो भी छद्मस्थ अवस्थाके कारण डेढ सौ गाथांके स्तवनमें सातवें. ठाणांगसूत्रकी साख दी है वह मिलती नहीं है । वह श्री भगवतीसूत्रके पाँचवें शतकके उद्देशमें मालूम होती है । इस जगह अर्थकर्ताने 'रासभवृत्ति' का अर्थ पशुतुल्य किया है; परन्तु उसका अर्थ ऐसा नहीं है । 'रासभवृत्ति' अर्थात् गधेको अच्छी शिक्षा दी हो तो भी जातिस्वभावके कारण धूल देखकर उसका मन लोटनेका हो जाता है; उसी तरह वर्तमानto बोलते हुए भविष्यकालमें कहनेकी बात बोल दी जाती है । . ३. ‘भगवती आराधना’में लेश्याके अधिकार में प्रत्येककी स्थिति आदि अच्छी तरह बतायी है । ४. परिणाम तीन प्रकारके हैं - होयमान, वर्धमान और समवस्थितः। पहले दो छद्मस्थको होते हैं, और अंतिम समवस्थित (अचल अकंप शैलेशीकरण) केवलज्ञानीको होता है ५. तेरहवें गुणस्थानकमें लेश्या तथा योगकी चलाचलता है, तो फिर वहाँ समवस्थित परिणाम किस तरह हो सकते हैं ? उसका आशय यह है कि सक्रिय जीवको अबंध अनुष्ठान नहीं होता । तेरहवें गुणस्थानकमें केवलोको भी योगके कारण सक्रियता है, और उससे बंध है; परन्तु वह बंध अबंधबंध गिना जाता है। चौदहवें गुणस्थानकमें आत्माके प्रदेश अचल होते हैं । उदाहरणरूपमें, जिस तरह पिंजरेका सिंह
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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