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________________ ५ Ivo r . । ७ महागभीर हो। ८. द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावका विचार कर ले। ९ यथार्थ कर। १० कार्यसिद्धि करके चला जा। १ पला जा - - -- nuar- i सहजप्रकृति १ परहितको ही निजहित समझना, और परदु खको अपना दुःख समझना । २ सुखदुःख दोनों मनकी कल्पनाएँ है । ३. क्षमा ही मोक्षका भव्य द्वार है। ४. सबके साथ नम्रभावसे रहना ही सच्चा भूषण है। ५. शान्त स्वभाव ही सज्जनताका सच्चा मूल है। ६ सच्चे स्नेहीकी चाह सज्जनताका विशेष लक्षण है। ७. दुर्जनका कम सहवास। ८ विवेकवुद्धिसे सब आचरण करना । ९. द्वेषभावको विषरूप समझना। १० धर्मकर्ममे वृत्ति रखना। ११. नीतिके विधान पर पैर नही रखना। १२. जितेन्द्रिय होना। १३. ज्ञानचर्चा और विद्याविलासमे तथा शास्त्राध्ययनमे जुट जाना। १४ गभीरता रखना। १५. संसारमे रहते हुए भो तथा उसे नीतिसे भोगते हुए भी विदेही दशा रखना। १६. परमात्माकी भक्तिमे रत होना । १७. परनिंदाको ही प्रबल पाप मानना । १८ दुर्जनता करके जीतना यही हारना है, ऐसा मानना । १९ आत्मज्ञान और सज्जन-सगति रखना। प्रश्नोत्तर प्रश्न १ जगतमे आदरणीय क्या है ? २ शीघ्र करने योग्य क्या? ३ मोक्षतरुका बीज क्या ? ४ सदा त्याज्य क्या? ५ सदा पवित्र कौन ? ६ सदा यौवनवान् कौन? उत्तर १ सद्गुरुका वचन । २ कर्मका निग्रह। ३ क्रियासहित सम्यग्ज्ञान । ४. अकार्य काम। ५ जिसका अन्त करण पापरहित हो । ६. तृष्णा (लोभ दशा)। .
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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