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________________ १४ ८० धर्मध्यानके उपयोगमे चलना । ८१ शरीर पर ममत्व न रखें । श्रीमद राजचन्द्र ८२ आत्मदशा नित्य अचल है, इसमे संशय न करे । ८३ किसीकी गुप्त बात किसीसे न करे । ८४ किसी पर जन्म पर्यंन्त द्वेषबुद्धि न रखे । 1 ८५ यदि किसीको कुछ द्वेपवश कहा गया हो, तो अति पश्चाताप करे, और क्षमा माँगें । फिर कभी वैसा न करें । ८६ कोई तुझसे द्वेषबुद्धि करे, परंतु तू वैसा नही करना ! ८७ जैसे भी हो, ध्यान शीघ्र करें। ८८ यदि किसीने कृतघ्नता की हो तो उसे भी समदृष्टि से देखें । ८९ दूसरेको उपदेश देनेका लक्ष्य है, इसकी अपेक्षा निजधर्ममे अधिक लक्ष्य देना । ९०. कथकी अपेक्षा मथनपर अधिक ध्यान देना । ९१ वीरके मार्गमै सशय न करें । ९२ ऐसा न हो तो केवलीगम्य है, ऐसा चिंतन करें, जिससे श्रद्धा बदलेगी नही । ९३ बाह्य करनीकी अपेक्षा अभ्यतर करनी पर अधिक ध्यान देना । ९४ 'मै कहाँसे आया ?" 'मै कहाँ जाऊँगा ?" 'मुझे क्या बंधन है ?" 'क्या करनेसे बधन चला जाये ?' 'कैसे छूटना हो ?' ये वाक्य स्मृतिमे रखें | ९५. स्त्रियोके रूप पर ध्यान रखते हैं, इसकी अपेक्षा आत्मस्वरूप पर ध्यान दें तो हित होगा । ९६ ध्यानदशा पर ध्यान रखते है, इसकी अपेक्षा आत्मस्वरूप पर सहजतासे होगा और समस्त आत्माओको एक दृष्टिसे देखेंगे । आपके लिये यह इच्छा अन्तरसे अमर हो जायेगी । यह अनुभवसिद्ध वचन है ! ध्यान देंगे तो उपशम भाव एकचित्तसे अनुभव होगा तो ९७ किसीके अवगुण की ओर ध्यान न देना । परन्तु अपने अवगुण हो तो उन पर अधिक दृष्टि रखकर गुणस्थ हो जाना । ९८ बद्ध आत्माको जैसे बाँधा उससे विपरीत वर्तन करनेसे वह छूट जायेगा । ९९ स्वस्थानक पर पहुँचनेका उपयोग रखें । १०० महावीर द्वारा उपदिष्ट वारह भावनाएँ भावे । १०१. महावीरके उपदेशवचनोका मनन करें । १०२ महावीर प्रभु जिस मार्गसे तरे और उन्होने जैसा तप किया वैसा तप निर्मोहतासे करना । १०३. परभावसे विरक्त हो । १०४ जैसे भी हो, आत्माका आराधन त्वरासे करें । १०५ सम, दम, खमका अनुभव करे । १०६ स्वराज पदवी स्वतप आत्माका लक्ष रखे ( दें ) | १०७ रहन-सहन पर ध्यान देना । १०८. स्वद्रव्य और अन्य द्रव्यको भिन्न-भिन्न देखे | १०९ स्वद्रव्यके रक्षक शीघ्र हो । ११० स्वद्रव्यके व्यापक शीघ्र हो । १११. स्वद्रव्यके धारक शीघ्र हो । ११२. स्वद्रव्यके रमक शोघ्र हो ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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