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________________ श्रीमद राजचन्द्र , ६६८ ९४६ श्री 'मोक्षमाला' के 'प्रज्ञावबोध' भागको संकलना १. वाचकको प्रेरणा २. जिनदेव ३. निग्रंथ ४ दयाकी परम धर्मता ५ सच्चा ब्राह्मणत्व ६. मैत्री आदि चार भावना । ७. सत्शास्त्रका उपकार , ८. प्रमादके स्वरूपका ९ तीन मनोरथ विशेष विचार १० चार सुख शय्या ११ व्यावहारिक जीवोके भेद १२ तीन आत्मा १३ सम्यग्दर्शन १४. महात्माओकी असगता १५ सर्वोत्कृष्ट सिद्धि १६. अनेकातकी प्रमाणता १७. मन-भ्राति १८. तप १९ ज्ञान २०. क्रिया २१. आरभ-परिग्रहकी निवृत्तिपर ज्ञानी द्वारा दिया हुआ बहुत बल। २२ दान २३ नियमितता २४. जिनागमस्तुति २५ नवतत्त्वका सामान्य २६ सार्वत्रिक श्रेय २७ सद्गुण सक्षिप्त स्वरूप २८ देशधर्म सम्बन्धी विचार २९ मौन ३० शरीर ३१ पुनर्जन्म ३२ पचमहावत सम्बन्धी विचार ३३ देशबोध ३४ प्रशस्त योग '३५ सरलता ३६ निरभिमानता ३७ ब्रह्मचर्यकी सर्वोत्कृष्टता ३८ आज्ञा । ३९ समाधिमरण ४० वैतालीय अध्ययन । ४१ सयोगकी अनित्यता ४२ महात्माओकी अनत समता ४३ सिरपर न चाहिये ४४ (चार) उदय आदि भग ४५ जिनमतनिराकरण ४६ महामोहनीय स्थानक ४७ तीर्थकर पद सप्राप्ति स्थानक ४८ माया ४९ परिषहजय ५०. वीरत्व ५१ सद्गुरस्तुति ५२ पाँच परमपद सम्बन्धी विशेष ५३ अविरति ५४ अध्यात्म विचार ५५. मत्र ५६ छ पद निश्चय ५७ मोक्षमार्गको अविरोधता ५८ सनातन धर्म ५९ सूक्ष्म तत्त्वप्रतीति ६० समिति गुप्ति ६१. कर्मके नियम ६२. महापुरुषोकी अनत दया ६३. निर्जराक्रम ६४ आकाक्षाके स्थानमे किस ६५ मुनिधर्मयोग्यता ६६ प्रत्यक्ष और परोक्ष तरह वर्तन करना? ६७ उन्मत्तता ६८ एक अंतर्मुहूर्त ... ... ६९ दर्शनस्तुति ७० विभाव ७१ रसास्वाद ____७२ अहिंसा और स्वच्छंदता ७३ अल्प शिथिलतासे महा- ७४ पारमार्थिक सत्य ___७५ आत्मभावना दोषका जन्म ७६ जिनभावना ७७-९० महापुरुष चरित्र ९१-१०० (किसी भागमे वृद्धि) १०१-१०६ हितार्थी प्रश्न १०७-१०८. समाप्ति अवसर
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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