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________________ z " श्रीमद राजचन्द्र नित्य निरंजन नित्य छो, गंजन गंज गुमान । अभिवदन अभिवदना, भयभंजन भगवान ॥ ४ ॥ धर्मधरण तारणतरण, शरण चरण सन्मान । विघ्नहरण पावनकरण, भयभंजन भगवान ॥ ५ ॥ भद्रभरण भीतिहरण, सुधाझरण शुभवान । क्लेशहरण चिताचूरण, भयभंजन भगवान ॥ ६ ॥ अविनाशी अरिहंत तुं, एक अखंड अमान । अजर अमर अणजन्म तुं, भयभंजन भगवान ॥ ७ ॥ आनंदी अपवर्गी तुं, अकळ गति अनुमान । आशिष - अनुकूल आपजे, भयभंजन भगवान ॥ ८ ॥ निराकार निर्लेप छो, निर्मळ नीतिनिधान । निर्मोहक नारायणा, भयभंजन भगवान ॥ ९ ॥ सचराचर स्वयंभू प्रभु, सुखद सोपजे सान । सृष्टिनाथ सर्वेश्वरा, भयभंजन भगवान ॥१०॥ संकट शोक सकळ हरण, नौतम ज्ञान निदान । इच्छा विकळ अचळ करो, भयभंजन भगवान ॥ ११ ॥ आधि व्याधि उपाधिने, हरो तंत तोफान । करुणाळु करुणा करो, भयभंजन भगवान ॥ १२ ॥ किंकरनी कंकर मति, भूल भयंकर भान । शंकर ते स्नेहे हरो, भयभंजन भगवान ॥ १३ ॥ ४ हे भयभजन भगवान । तू नित्य निरजन, नित्य और अहकारपुजका नाशक है । तुझे वारवार अभि वन्दन हो । ५ हे भयभजन भगवान । तू धर्मका धारक, तरनतारन, विघ्नहारी एव पावनकारी है । तेरे चरणोकी उपासना मेरी शरण है । ६ हे भयभजन भगवान । तू कल्याणकारी, भीतिहारी, सुधाका झरना, भगलमय, क्लेशहर और चिन्ता नाशक है । ७ हे भयभजन भगवान । तू अविनाशी, अरिहत, एक अखड एव असीम है । तू अजन्मा, अजर और अमर है। ८ हे भयभजन भगवान | तू आनन्दमय, मोक्षंमय और अनुमानसे अगोचर है । मुझे अनुकूल आशीर्वाद दे । ९ हे भयभजन भगवान । तू निराकार, निर्लेप, निर्मल, नीविनिधान और निर्मोहक नारायण है । १० हे भयभजन भगवान । तू सचराचर, स्वयंभू, प्रभु, विश्वनाथ और सर्वेश्वर है । मुझे सुखद बोघ दे | ११ हे भयभजन भगवान ! तू समस्त सकट और शोकका निवारक और नूतन ज्ञानका मूल कारण है । मेरी विकल इच्छाको अचल कर । १२ हे भयभजन भगवान । करुणालु करुणा कर । आषि, व्याधि, उपाधि और कर्मसन्ततिका उपद्रव दूर कर । १३ हे भयभजन भगवान ! किकरकी मति ककड जैसी है, आत्मभानकी भयंकर भूल | हे शकर | उसे प्रेमसे दूर कर ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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