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________________ [५३ ] . . tacha ७६२ ८६ जीवमें सकोच-विस्तारकी शक्ति ७५९ ८८ पदार्थमें अचिंत्य शक्ति ७५९ ८९ परभावके सूक्ष्म निरूपणके कारण ७५९ ९२ जीवकी अल्पज्ञता ७६० ९३ उत्तम मार्ग, द्रव्यके सामर्थ्यकी अनुभवसिद्धिका पुरुषार्थ ७६० ९४ कर्मबधमें देहस्थित आकाशके सूक्ष्म पुद्__ गलोका ग्रहण ७६० ९७ नामकर्मका सबघ ७६० ९८-१०२ विरति, अविरति, अविरतिपाके । __ वारह प्रकार, अविरतिपनाकी पापक्रिया ७६१ १०३-१०४ व्यक्त व अव्यक्त क्रिया, क्रियासे होनेवाले वघके पाँच प्रकार ७६१ १०५-१०७ बाह्याभ्यतर विरतिपन, मोहभावसे मिथ्यात्व . ७६२ १०८ बारह प्रकारकी विरतिमें जीवाजीवकी विरति । १०९-११० ज्ञानीकी वाणी और आशा ७६२ १११ वस्तुस्वरूपकी प्रतिष्ठितता ७६२ ११३ लोकके पदार्थों का प्रवर्तन ज्ञानीकी आज्ञाके अनुसार ७६२ ११४-११६ काल औपचारिक द्रव्य, ऊर्ध्वप्रचय, तिर्यक्प्रचय ७६३ ११७ द्रव्यके अनत धर्म ७६३ ११८-११९ असख्यात और अनत ७६३ १२०-१२५ नय प्रमाणका एक अश, नय सात, जितने वचन उतने नय, नयका स्वरूप ७६३ १२६ केवलज्ञान और रागद्वेष ७६४ १२७ गुण और गुणी ७६४ १२८ केवलज्ञानीकी आत्मा ७६४ १२९-१३० ज्ञान और अज्ञान, 'जन'का अर्थ जैनत्व ७६४ १३१-१३२ सूत्र और सिद्धात, उपदेशमार्ग और सिद्धातमार्ग ७६४ १३३-१३५ सिद्धात और तर्क ७६५ १३६-१३८ सुप्रतीतिसे अनुभवसिद्ध, सिद्धातके दृष्टात १३९-१४१ क्षयोपशमके अतिरिक्तकी बातें. पूर्ण शक्ति लगाकर ग्रन्थिभेद करनेसे मोक्षकी मुहर, अविरतिसम्यग्दृष्टि ७६५ १४२-१४३ तेरहवां और सातवाँ गुणस्थानक ७६६ १४४-१४७ पहले और चौथे गुणस्थानकमे । स्थिति अथवा भावकी भिन्नता ७६६ १४८-१५१ सातवें गुणस्थानकमें आगेके , विचारकी सुप्रतीति और सिंहका दृष्टात, मतभेद आदि और सत्यकी प्रतीति ७६६ १५२ परिणाम और बादरदशा . , . ७६६ १५३ चतुराई और स्वेच्छा दूर करनेके लिये, सम्यक्त्वप्राप्ति, जिनप्रतिमासे शातदशाकी प्रतीति ७६७ १५४ जैनमार्गमे गच्छोकी परस्पर मान्यता, नौकोटि ७६७ १५५ मोक्षमार्ग और रूढ़ि ७६७ १५६ सम्यक्त्वकी चमत्कृति ७६७ १५७ दुर्घर पुरुषार्थसे मोक्षमार्गकी प्राप्ति ७६७ १५८-१६० सूत्र आदिकी सफलता, व्यव हारका भेद और मोक्षमार्ग ७६७ १६१-१६४ मिथ्यात्व और सम्यक्त्व विचार ज्ञान' मोक्ष ७६७ १६५ कर्मपरमाणु दृश्य ७६८ १६६ पदार्थधर्मका वक्तव्य ७६८ १६७-१६८ यथाप्रवृत्ति आदि करण, युजन करण और गुणकरण ७६८ १६९-१७० कर्मप्रकृतिके वध आदि भावोका __वर्णन करनेवाला पुरुष ईश्वर कोटिका ७६८ १७१ जातिस्मरण मतिज्ञानका भेद ७६८ १७२ आज्ञा और अदत्तग्रहण ७६८ १७३ उपदेशके मुख्य चार प्रकार-द्रव्यानु योग आदि १७४ परमाणुके गुण और पर्याय, उसके विचारसे क्रमश ज्ञान ७६९ १७५-१७६ तेजस और कार्मण शरीर ७६९ १७७-१७८ चार अनुयोगके विचारसे निर्जरा ७६९ १७९ पुद्गल पर्याय आदिका सूक्ष्म कथन आत्मार्थ ७६९ ७६९
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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