SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५९ ] निष्काम भक्तिमे ज्ञान, ज्ञानी - अज्ञानीका उपदेश, कदाग्रह छुडानेके लिये तिथियाँ, बडा पाप अज्ञानका, अपनी शिथिलताके बदले उदयको दोष, पुरुषार्थ करना श्रेष्ठ ७१८ ८ पुरुषार्थजयका आलबन, साधन मिलनेसे आत्मज्ञान, ज्ञानके दो प्रकारबीजभूत और वृक्षभूत, आत्मा अरूपी, की मूल प्रकृति आठ, गच्छके भेद, कल्याणका मार्ग एक ही, आत्माकी सामायिक, आत्माकी पहचानसे कर्मनाश, सम्यक्त्वके प्रकार, सात प्रकृतियोके क्षयसे सम्यक्त्वकी उत्पत्ति, सच्ची भक्तिकी प्राप्ति, व्रतादि नियमसे कोमलता ९ गृहस्थाश्रममे सत्पुरुषका त्याग वैराग्य, सत्पुरुषके गृहस्थाश्रम की स्थिति प्रशस्त, सदाचार, सत्पुरुष और योग्यता, स्वयजागृत रहे, दोषोका ही दोष, मुमुक्षुका त्याग-वैराग्य,, सम्यक्त्व अपने पास ही, सच्चा शिष्य, आज्ञासे कल्याण, ममत्व मिथ्यात्व, सच्चा सग, भेद भासना अनादि भूल, मोक्ष क्या है ? सम्यक्त्वका मार्ग, षड्दर्शन, केवलज्ञान, सम्यक्त्व कैसे ज्ञात हो ? सम्यक्त्व सर्वोत्कृष्ट साधन, अतरात्मा होनेके बाद परमात्मत्व, उपयोग और मन, कदाग्रह, आत्मा तिलमात्र दूर नही है, ग्रन्थिभेद, उपशम सम्यक्त्व, व्रतमे उपयोग 1 १० कामना पाप, आत्मामे आटी, आत्मज्ञान, जीवन्मुक्त होना, निष्क्रियता, विचारानुसार भावात्मा, ब्रह्मचर्य, देहकी मूर्च्छा, जीव कैसे वर्तन करे ? ज्ञानीका सदाचरण परोपकारके लिये, जैनधर्मकी स्थिति, तीन प्रकारके जीव, पडिक्कमामि आदिका अर्थ, सूत्र आदि साघन आत्मपहचान के लिये, समकिती में गुण, नय आत्माको समझने के लिये, समकितीको देशकेवलज्ञान, व्रतनियम, सच्चे झूठेको परीक्षा, उपवास तिथिके लिए नही ७२० ७२२ ! परंतु आत्मा के लिये, तप बारह प्रकारका, समकित और सामायिक, ज्ञान, दर्शन और चारित्र, आत्मा और सद्गुरु एक, सच्ची सामायिक, महावीरके दीक्षा जुलूसकी बात, सत्पुरुष के लक्षण, तरनेका कामी, आत्मस्वरूप, केवलज्ञान, सम्यक्त्वके प्रकार, स्वभावस्थिति ७२६ ११ इस कालमे मोक्ष, शुभाशुभ क्रिया, सहजसमाधि, कुगुरु, समकित देशचारित्र, देशकेवलज्ञान, मोक्षमार्ग है, भगवानका स्वरूप, समकित सर्वोत्कृष्ट, उलटे मार्गपर सिद्धका सुख, वृत्ति रोकना, ममत्व दुख, आहार आदिकी बातें तुच्छ, क्रोध आदि कृश करना, विवेक, शम और उपशमसे मोक्ष, वेदाती और पूर्वमीमासककी मुक्तिमान्यता, सिद्धमे सवर - निर्जरा नही, धर्मसन्यास, जीव सदा ही जीवित, आत्माकी निंदा करें, पुरुषार्थमें पाँच कारण, चौथे गुणस्थानकमें व्यवहार, पुरुषार्थवृद्धिके लिये नय, सत्सगसे अना - यास गुणोत्पत्ति, सत्य बोलना बिलकुल सहज, सच्चा नय, सदाचारका सेवन, ज्ञानका अभ्यास, विभावके त्यागके लिये सत्साधन, समकितके मुल बारह व्रत, सत्पुरुषके योगसे व्रतादि सफल, सत्सगसे शल्य दूर हो, सदा भिखारी, सदा सुखी, सच्चे देव, गुरु और धर्म की पहचान, सम्यग्दर्शन श्रेष्ठ १२ मिथ्यात्व जानेपर फल, जैनके साघु, सच्चा ज्ञान, मनुप्यभव भी वृथा, सत्पुरुषकी पहचान, सचमुच पाप, अल्प व्यवहारमें बडप्पन और अहकार, परिग्रहकी मर्यादा, क्रोधादिका त्याग, ब्रह्मचर्य, मेरा स्वरूप भिन्न, क्षणिक आयु, वडप्पनकी तृष्णा, अज्ञानी की क्रिया निष्फल, विभाव ही मिथ्यात्व अधमाधम पुरुषके लक्षण, नाककी राख, देहका स्वरूप, ससारप्रीतिसे पराधीनता के दुख, सच्चा श्रावक, जीव अविचारसे भूला हूँ । ७३३ ७४०
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy