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________________ २६६ श्रीमद् राजचन्द्र ८. इसमे कही हुई बात सव शास्त्रोको मान्य है। ९. ऋषभदेवजीने अट्टानवें पुत्रोको त्वरासे मोक्ष होनेका यही उपदेश किया था। १० परीक्षित राजाको शुकदेवजीने यही उपदेश किया है। ११. अनंत काल तक जीव स्वच्छदसे चलकर परिश्रम करे तो भी अपने आप ज्ञान प्राप्त नही करता, परन्तु ज्ञानीकी आज्ञाका आराधक अन्तर्मुहूर्तमे भी केवलज्ञान प्राप्त कर लेता है। १२ शास्त्रमे कही हुई आज्ञाएँ परोक्ष है और वे जीवको अधिकारी होनेके लिये कही हैं, मोक्षप्राप्तिके लिये ज्ञानीकी प्रत्यक्ष आज्ञाका आराधन करना चाहिये। , १३. यह ज्ञानमार्गकी श्रेणि कही, इसे प्राप्त किये बिना दुसरे मार्गसे मोक्ष नही है। १४ इस गुप्त तत्त्वका जो आराधन करता है, वह प्रत्यक्ष अमृतको पाकर अभय होता है। ॥ इति शिवम् ॥ २०१ बंबई, माघ वदी ३, गुरु, १९४७ सर्वथा निर्विकार होनेपर भी परब्रह्म प्रेममय पराभक्तिके वश है, इसका जिन्होंने हृदयमे अनुभव किया है, ऐसे ज्ञानियोकी गुप्त शिक्षा है। यहाँ परमानद है। असगवृत्ति होनेसे समुदायमे रहना बहुत विकट है। जिसका यथार्थ आनद किसी भी प्रकारसे नहीं कहा जा सकता, ऐसा सत्स्वरूप जिनके हृदयमे प्रकाशित हुआ है, उन महाभाग्य ज्ञानियोकी और आपको हमपर कृपा रहे । हम तो आपको चरणरज है, और त्रिकाल इसी प्रेमको निरंजनदेवसे याचना है। आजके प्रभातसे निरजनदेवका-कोई अद्भुत अनुग्रह प्रकाशित हुआ है, आज बहुत दिनोसे इच्छित पराभक्ति किसी अनुपम रूपमे उदित हुई है। गोपियाँ भगवान वासुदेव (कृष्णचद्र) को दहीकी मटकीमे रखकर बेचने निकली थी ऐसी श्रीमद् भागवत्मे एक 'कथा है, वह प्रसग आज बहुत याद आ रहा है । जहाँ अमृत बहता है वहाँ सहस्रदल कमल है, यह दहीकी मटकी है, और आदिपुरुष उसमे बिराजमान है वह भगवान वासुदेव है । उसको प्राप्ति सत्पुरुषकी चित्तवृत्तिरूप गोपीको होनेपर वह उल्लासमे आकर किसी दूसरे मुमुक्षु आत्माके प्रति ऐसा कहती है-"कोई माधव ले; हॉरे कोई माधव ले।" अर्थात् वह वृत्ति कहती है कि हमे आदिपुरुषकी प्राप्ति हुई है और यह एक ही प्राप्त करने योग्य है, और कुछ भी प्राप्त करने योग्य नहीं है, इसलिये आप प्राप्त करे । उल्लासमे वारवार कहती है कि आप उस पुराणपुरुषको प्राप्त करें, और यदि उस प्राप्तिको अचल प्रेमसे चाहे तो हम वह आदिपुरुष आपको दे दें। हम इस मटकीमे रखकर बेचने निकलो हैं, ग्राहक देखकर दे देती हैं, कोई ग्राहक बने, अचल प्रेमसे कोई ग्राहक बने, तो वासुदेवकी प्राप्ति करा दें। म्टकीमे रखकर बेचने निकलनेका अर्थ यह है कि सहस्रदल कमलमे हमे वासुदेव भगवान मिले है, मक्खनका तो नाम मात्र है, यदि सारी सृष्टिको मथ कर मक्खन निकालें तो मात्र एक अमृतरूप वासुदेव भगवान ही मक्खन निकलता है। ऐसे सूक्ष्म स्वरूपको स्थूल बनाकर व्यासजीने अद्भुत भक्तिका गान किया है । यह कथा और समस्त भागवत इस एकको हो प्राप्त करानेके लिये अक्षरश भरपूर है । और वह मुझे (हमे बहुत समय पहले समझमे आ गया है, आज अति अति स्मरणमे है; क्योकि साक्षात् अनुभवप्राप्ति है, और इसी कारण आजको परम अद्भुत दशा है। ऐसी दशासे जीव उन्मत्त भी हुए बिना नही रहेगा, और वासुदेव हरि जान-बूझकर कुछ समयके लिये अदृश्य भी हो जायें, ऐसे लक्षणके धारक है । इसलिये हम असगता चाहते है, और आपका सहवास भी असगता ही है, इसलिये भी वह हमे विशेष प्रिय है। १. ऐसी कोई कया श्रीमद् भागवतमे तो नही है । इस तरहको जनश्रुति अवश्य हैं। -अनुवादक
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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