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________________ २३४ श्रीमद् राजचन्द्र सात्त्विक महावीर्यका तीन प्रकारसे विधान किया है (१) सात्त्विक शुक्ल (२) सात्त्विक धर्म (३) सात्त्विक मिश्र । सात्त्विक शुक्ल महावीर्यका तीन प्रकारसे विधान किया है___ (१) शुक्ल ज्ञान (२) शुक्ल दर्शन - (३) शुक्ल चारित्र (शील)। सात्त्विक धर्मको दो प्रकारसे विधान किया है (१) प्रशस्त (२) प्रसिद्ध प्रशस्त । इसका भी दो प्रकारसे विधान किया है- . (१) पण्णत्ते (२) अपण्णत्ते । सामान्य केवली तीर्थकर यह अर्थ समर्थ है। १५२ ववाणिया, आसोज सुदी ११, शुक्र, १९४६ आज आपका कृपा पत्र मिला। साथमे पद मिला। - सर्वार्थसिद्धकी ही बात है। जैनमे ऐसा कहा है कि सर्वार्थसिद्ध महाविमानको ध्वजासे बारह योजन दूर मुक्तिशिला है । कबीर भी ध्वजासे आनन्दविभोर हो गये हैं। उस पदको पढकर परमानन्द हुआ। प्रभातमे जल्दी उठा, तबसे कोई अपूर्व आनन्द रहा ही करता था। इतनेमे पद मिला, और मूलपदका अतिशय स्मरण हो आया, एकतान हो गया। एकाकार वृत्तिका वर्णन शब्दसे कैसे किया जा सकता है ? दिनके बारह बजे तक रहा। अपूर्व आनन्द तो वैसाका वैसा ही है। परन्तु दूसरो वार्ता (ज्ञानको) करनेमे उसके बादका कालक्षेप किया।' ..१ "केवलज्ञान हवे पामशु, पामशं, पामशं, पामशु रे के०" ऐसा एक पद बनाया। हृदय बहुत आनन्दमे है। १५३ ववाणिया, आसोज सुदी १२, शनि, १९४६ धर्मेच्छुक भाइयो, आज आपका एक पत्र मिला (अबालालका)। उदासीनता अध्यात्मकी जननी है। , . ससारमे रहना और मोक्ष होना कहना, यह होना असुलभ है। वि० रायचन्दके यथायोग्य। 'मोरबी, आसोज, १९४६ *बीजां साधन बहु कयाँ, करी कल्पना आप। ., . अथवा असद्गुरु थकी, ऊलटो वध्यो उताप । . १ अर्थात् केवलज्ञान अब पायेंगे, पायेंगे, पायेंगे रे के। . ' २. देखें आक ८६ । --- ..... * भावार्थ-अपनी कल्पनासे अथवा-असद्गुरुके योगसे सुखके लिये दूसरे बहुतसे साधन किये, परन्तु सुखके बदले दुख ही वढा। . . . . . .
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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