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________________ १५० श्रीमद् राजचन्द्र ४४७. परमहसकी हँसी नही उड़ाऊँ। ४४८ आदर्श नही देखें। ४४९ आदर्शमे देखकर नही हँ । ४५० प्रवाही पदार्थमे मुख नही देखू। ४५१ तसवीर नही खिंचवाऊँ। ४५२. अयोग्य तसवोर नही खिंचवाऊँ । ४५३ अधिकारका दुरुपयोग नही करूँ। ४५४ झूठी हाँ नही कहूँ। ४५५ क्लेशको उत्तेजन नही दूं। ४५६ निंदा नही करूँ। ४५७ कर्तव्य नियम नही चूकूँ। ४५८ दिनचर्याका दुरुपयोग नही करू । ४५९ उत्तम शक्तिको सिद्ध करूं। ४६० बिना शक्तिका कृत्य नही करूं। ४६१ देश, काल आदिको पहचानें। ४६२ कृत्यका परिणाम देखें। ४६३. किसीके उपकारका लोप नही करूं। ४६४. मिथ्या स्तुति नही करूँ। ४६५. कुदेवकी स्थापना नही करूं । ४६६. कल्पित धर्मको नही चलाऊँ। ४६७ सृष्टिस्वभावको अधर्म नही कहूँ। ४६८. सर्व श्रेष्ठ तत्त्वको लोचनदायक मा। ४६९. मानता नही मान। ४७०. अयोग्य पूजन नहीं करूँ। ४७१. रातमे शीतल जलसे नही नहाऊँ । ४७२ दिनमे तीन बार नहीं नहाऊँ। ४७३. मानकी अभिलाषा नही रखू।। ४७४ आलापादिका सेवन नहीं करूँ। ४७५ दूसरेके पास बात नही करूं। ४७६ छोटा लक्ष्य नही रखू । ४७७. उन्मादका सेवन नही करूँ। ४७८. रौद्रादि रसका उपयोग नही करूं। ४७९. शात रसकी निंदा नही करूं। ४८०. सत्कर्मके आड़े नही आऊँ । (मु०, गृ०) ४८१. पीछे हटानेका प्रयत्न नही करूँ। ४८२. मिथ्या हठ नही पकड़ें। ४८३. अवाचकको दुःख नहीं दूं। ४८४. अपगकी सुखशाति बढ़ाऊँ। ४८५ नीतिशास्त्रको मान दूं।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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