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________________ १९वां वर्ष १३७ इस प्रकार किये गये बावन अवधानोके सवधमे लिखनेकी यहाँपर पूर्णाहुति होती है। ये वावन काम एक समयमे एक साथ मनःशक्तिमे धारण करने पड़ते है। अज्ञात भाषाके विकृत अक्षर सुकृत करने पड़ते हैं । सक्षेपमे आपसे कह देता हूँ कि यह सब याद ही रह जाता है। (अभी तक कभी विस्मृति नही हुई है ।) इसमे बहुत-कुछ मर्म समझना रह जाता है। परन्तु दिलगीर हूँ कि वह समझाना प्रत्यक्षमे ही सभव है। इसलिये यहाँ लिखना वृथा है। आप निश्चय कीजिये कि यह एक घटेका कितना कौशल्य है ? सक्षिप्त हिसाब गिनें तो भी बावन श्लोक तो एक घंटेमे याद रहे या नहीं? सोलह नये (विषय), आठ समस्याएँ, सोलह भिन्न-भिन्न भाषाके अनुक्रमविहीन अक्षर और बारह दूसरे काम कुल मिलाकर एक विद्वानने गिनती करनेपर मान्य रखा था कि ५०० श्लोकोका स्मरण एक घटेमे रह सकता है। यह बात अब यहॉपर इतनेसे ही समाप्त कर देते है। आ-तेरह महीने हुए देहोपाधि और मानसिक व्याधिके परिचयसे कितनी ही शक्ति दबाकर रखने जैसी ही हो गई है। ( बावन जैसे सौ अवधान तो अभी भी हो सकते है । ) नही तो आप चाहे जिस भाषाके सौ श्लोक एक बार बोल जाये तो उन्हे पुनः उसी प्रकार स्मृतिमे रखकर कह सुनानेकी समर्थता इस लेखकमे थी। और इसके लिये तथा अवधानोके लिये इस मनुष्यको 'सरस्वतीका अवतार' ऐसा उपनाम मिला हआ है। अवधान आत्मशक्तिका कार्य है, यह मुझे स्वानुभवसे प्रतीत हुआ है। आपका प्रश्न ऐसा है कि “एक घटेमे सौ श्लोक स्मरणमे रह सकते है ?" इसकी मार्मिक स्पष्टता तो उपर्यक्त विषय कर ही देंगे, ऐसा मानकर उसे यहाँ नही लिखा है। आश्चर्य, आनन्द और सदेहमेसे अब आपको जो योग्य लगे उसे ग्रहण करें। इ-मेरी क्या शक्ति है ? कुछ भी नही। आपको शक्ति अद्भुत है । आप मेरे लिये आश्चर्यचकित होते है और मै आपके लिये आनदित होता हूँ। आप सरस्वती सिद्ध करनेके लिये काशीक्षेत्रकी ओर पधारनेवाले है, . यह पढकर मै अत्यानद-कुशल हुआ हूँ। अस्तु | आप कौनसे न्यायशास्त्रकी बात करते है ? गौतम मुनिका या मनुस्मृति, हिंदु धर्मशास्त्र, मिताक्षरा, व्यवहार, मयूख आदि प्राचीन न्यायग्रन्थ या आधुनिक ब्रिटिश लॉ, प्रकरण? इसकी स्पष्टता मुझे नही हुई। मुनिका न्यायशास्त्र मुक्ति-प्रकरणमे समाविष्ट होने योग्य है । दूसरे ग्रन्थ राज्य-प्रकरणमे "ब्रिटिशमा माठा"-समाविष्ट होते हैं । तीसरा खास ब्रिटिशके लिये ही है, परन्तु वह अंग्रेजीमे है। तो अब आपने इनमेसे किसे पसन्द किया है ? यह मर्म खुलना चाहिये। यदि मुनिशास्त्र और प्राचीन शास्त्रके सिवाय गिना हो तो इसका अभ्यास काशीमे नही होता । परन्तु मेट्रिक्युलेशन पास होनेके बाद बम्बई और पूनामे होता है। दूसरे शास्त्र समयानुकूल नही हैं। आपका विचार जाने बिना ही यह सब लिख डाला है। परन्तु लिख डालनेमे भी एक कारण है । वह यह है कि आपने साथमे अंग्रेजी विद्याभ्यासकी वात लिखी है, तो मैं मानता हूँ कि इसमे आप कुछ भूल करते होगे। बम्बईकी अपेक्षा काशीकी तरफ अंग्रेजीअभ्यास कुछ उत्कृष्ट नही है; जब उत्कृष्ट न हो तब दूर जानेका हेतु कुछ सौर होगा। आप लिखें तो जानें, तब तक शंकाग्रस्त हूँ। १ मुझे अभ्यासके बारेमे पूछा है इसकी जो स्पष्टता मुझे करनी है, वह उपर्युक्त वातकी स्पष्टता हुए बिना नहीं की जा सकती; और जो स्पष्टता में करनेवाला हूँ वह दलीलोंसे करूंगा। ज्ञानवर्धक सभाके व्यवस्थापकका उपकार मानता हूँ, क्योकि वे इस अनुचरके लिये कष्ट उठाते हैं। यह सारी स्पष्टता सक्षेपमे कर दी है। विशेषकी आवश्यकता हो तो पूछिये । १ यह किसी ग्रन्थका नाम है।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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