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________________ 1 १९ वाँ वर्ष १८ वाणिया, मि २६-१-८-१९ मुकुटमणि रवजीभाई देवराजको पवित्र सेवामे, ववाणिया बदरसे वि० रायचंद वि० रवजीभाई मेहताका प्रेमपूर्वक प्रणाम मान्य कीजियेगा । य धर्म-प्रभाव वृत्तिसे कुशल हूँ । आपकी कुशलता चाहता हूँ । आपका दिव्य प्रेमभावभूपित पत्र मुझे मिल पढकर अत्यानदार्णवतरगें उमड आईं है । दिव्य प्रेमका अवलोकन करके आपका परम स्मरण हो आया है ऐसे प्रेम भरे पत्र निरतर मिलते रहनेका निवेदन है, और उसे स्वीकृत करना आपके हाथकी बात है । इ लिये चिन्ता जैसा नही है | आपके द्वारा पूछे गये प्रश्नो के उत्तर यहाँ प्रस्तुत करनेकी अनुमति लेता हूँ । प्रवेशक. - आपका लिखना उचित है । स्वस्वरूपका चित्रण करते हुए मनुष्य झिझकता जरूर है। परतु स्वस्वरूपमे जब आत्मस्तुतिका किंचित् अश मिल जाये तब, नही तो कदापि नही, ऐसा मेरा अभिप्रा है । आत्मस्तुतिका सामान्य अर्थ भी ऐसा होता है कि अपनी झूठी आपवडाई चित्रित करना, अन्यथा व आत्मस्तुतिका उपनाम प्राप्त करती है, परंतु यथार्थ चित्रण वैसा नही कहा जाता । और यदि यथा स्वरूपको आत्मस्तुति माना जाये तो फिर महात्मा प्रख्यातिमे आवे ही कैसे ? इसलिये आपके पूछनेप स्वस्वरूपकी सत्यता किंचित् बताते हुए यहाँ मैंने सकोच नही किया है, और तदनुसार करते हुए मैं न्याय पूर्वक दोषी भी नही हुआ हैं । अ—बम्बई-निवासी पडित लालाजीके अवधानोके सवधमे आपने बहुत कुछ पढा होगा । ये पडित राज अष्टावधान करते है, जो हिंदप्रसिद्ध है । यह लिखनेवाला बावन अवधान खुले आम एक वार कर चुका है, और उसमे यह विजयी सिद्ध ह सका है । वे बावन अवधान १ तीन व्यक्तियोके साथ चौपड खेलते जाना २ तीन व्यक्तियोके साथ ताश खेलते जाना ३ एक व्यक्तिके साथ शतरज खेलते जाना ४ झालरके बजते टकोरे गिनते जाना ५ जोड, बाकी, गुणाकार एव भागाकार मनमे गिनते जाना ६ माला के मनकेपर ध्यान रखकर गिनती करना ७ आठेक नयी समस्याओकी पूर्ति करना ८ विवादकोसे निर्दिष्ट सोलह नये विषयोपर निर्दिष्ट छदोमे रचना करते जाना ९ ग्रीक, अँग्रेजी, संस्कृत, अरबी, लेटिन, उर्दू, गुजराती, मराठी, बगाली, मारवाडी, जाडेजी आदि सोलह भाषाओके अनुक्रमविहीन चारसी शब्द कर्ता-कर्मसहित पुन. अनुक्रमबद्ध कह सुनाना बीचमे दूसरे काम भी करते जाना १० विद्यार्थीको समझाना ११ कतिपय अलकारोका विचार M इ ८ १६ १६ १ ५२
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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