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________________ अन्त भी नहीं है। श्रीमद् राजवन्द्र इन्द्रियाँ सम्पूर्ण हैं और एकको अपूर्ण है। एकको दीनदुनियाका लेश भान नहीं है और एकके दु खर एक गर्भमे आते ही मर जाना है, एक जन्म लेते ही मर जाता है एक मरा हुआ जन्म लेता और एक सौ वर्षका वृद्ध होकर मरता है। किसीका मुख, भापा और स्थिति समान नही है । मूर्ख राजगद्दीपर खमा-खमाके उद्गारोसे अ]ि नन्दन पाते है और समर्थ विद्वान धक्के खाते है । इस प्रकार सारे जगतकी विचित्रता भिन्न-भिन्न प्रकारसे तुम देखते हो, इस परसे तुम्हें कुछ विचा आता हे ? मैने कहा है, फिर भी विचार आता हो तो कहो कि यह सब किस कारणसे होता है ? अपने वॉये हुए शुभाशुभ कर्मसे । कर्मसे सारे ससारमे भ्रमण करना पड़ता है। परभव नही मानने वाला स्वय यह विचार किससे करता है ? यह विचार करे तो अपनी यह वात वह भी मान्य रखे । शिक्षापाठ ४ : मानवदेह 'तुमने सुना तो होगा कि विद्वान मानवदेहको दूसरी सभी देहोकी अपेक्षा उत्तम कहते हैं। पर उत्तम कहनेका कारण तुम नही जानते होगे इसलिये मै उसे कहता हूँ। यह ससार बहुत दु खसे भरा हुआ है। ज्ञानी इसमेसे तरकर पार होनेका प्रयत्न करते हैं। मोक्षक साधकर वे अनत सुखमे विराजमान होते हैं। यह मोक्ष दूसरी किसी देहसे मिलनेवाला नही है। देव तिथंच या नरक इनमेसे एक भी गतिसे मोक्ष नहीं है; मात्र मानवदेहसे मोक्ष है। __ अब तुम पूछोगे कि सभी मानवोका मोक्ष क्यो नही होता? इसका उत्तर भी मै कह दूं। जो मानवताको समझते है वे ससारशोकसे पार हो जाते हैं। जिनमे विवेकबुद्धिका उदय हुआ हो उनमे विद्वान मानवता मानते हैं। उससे सत्यासत्यका निर्णय समझकर परम तत्त्व, उत्तम आचार और सद्धर्मका सेवन करके वे अनुपम मोक्षको पाते हैं । मनुष्यके शरीरके देखावसे विद्वान उसे मनुष्य नही कहते, परतु उसके विवेकके कारण उसे मनुष्य कहते हैं। जिसके दो हाथ, दो पैर, दो ऑखें, दो कान, एक मुख, दो होठ और एक नाक हो उसे मनुष्य कहना, ऐसा हमे नही समझना चाहिये। यदि ऐसा समझें तो फिर वदरको भी मनुष्य मानना चाहिये । उसने भी तदनुसार सव प्राप्त किया है। विशेषरूपसे उसके एक पूछ भी है। तव क्या उसे महामनुष्य कहें ? नही , जो मानवता समझे वही मानव कहलाये। .. ज्ञानी कहते है कि यह भव बहुत दुर्लभ है, अति पुण्यके प्रभावसे यह देह मिलती है, इसलिये इससे शोघ्र आत्मसार्थकता कर लेनी चाहिये। अयमतकुमार, गज़सूकूमार जैसे छोटे बालक भी मानवताको समझनेसे मोक्षको प्राप्त हुए । मनुष्यमे जो शक्ति विशेष है उस शक्तिसे वह मदोन्मत्त हाथी जैसे प्राणीको भी वशमे कर लेता है, इसी शक्तिसे यदि वह अपने मनरूपी हाथीको वशमे कर ले तो कितना कल्याण हो! किसी भी अन्य देहमे पूर्ण सद्विवेकका उदय नही होता और मोक्षके राजमार्गमे प्रवेश नहीं हो सकता । इसलिये हमे मिली हुई अति दुर्लभ मानवदेहको सफल कर लेना आवश्यक है। बहुतसे मूर्ख दुराचारमे, अज्ञानमे, विपयमे और अनेक प्रकारके मदमे, मिली हुई मानवदेहको वृथा गँवा देते है। अमूल्य कौस्तुभ खो वठते है । ये नामके मानव गिने जा सकते हैं, बाकी तो वे वानररूप ही हैं। मौतके पलको निश्चितरूपसे हम नहीं जान सकते, इसलिये यथा-सभव धर्ममे त्वरासे सावधान होना चाहिये। १ देखिये 'भावनावोघ', पचम चित्र-प्रमाणशिक्षा ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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