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________________ [१०] यह सारा वचनामृत हिंदी भाषामे अनुवादित करा कर वि० सवत् १९९४ मे प्रकट किया था जिसमे अनुवादक प० श्री जगदीशचंद्र शास्त्रीने श्रीमद्जीके जीवन और विचारो संबधी विस्तृत विवेचन किया है । इस संस्करणके संबंध में :-- श्रीमद्जीके अनन्य उपासक, परम भक्तिमान श्री लघुराजस्वामी के आश्रयमे स्थापित इस श्रीमद् राजचद्र आश्रम व्यवस्थापकों की बहुत समयसे अपने आराध्यदेव श्रीमद्जीके लेख प्रकाशित करनेकी भावना थी । तत्संबंधी श्री परमश्रुत प्रभावक मंडलकी अनुमति मिलनेसे इस कार्यके लिये सशोधन कर पूरी नयी पाण्डुलिपि निम्न साधनोके आधार पर तैयार की गई है - 7 १. श्रीमद्जीके हस्ताक्षरके मूल पत्र, अन्य लेख तथा सस्मरणपोथियाँ तथा मूल हस्ताक्षरके पत्रों परसे इस आश्रम द्वारा तैयार कराये हुए चित्र ( फोटे ) | २ श्री अंबालालभाई द्वारा तैयार की गई पुस्तक जिसमे श्रीमद्जीने स्वय शुद्धि वृद्धि की है । ३ श्री दामजीभाई केशवजी द्वारा मूल पत्र तथा अन्य साहित्यकी कराई गई नकलें । ४. श्रीमद्जीको सूचनासे श्री अवालालभाईने श्री लघुराजस्वामी आदि मुनियोको नकल कर दी हुई डायरियाँ | 17 ५ मुमुक्षुओसे प्राप्त मूलपत्रोकी नकलें । ६ उपदेशछाया, उपदेशनोध, व्याख्यानसार आदिकी लिखी हुई डायरियाँ | ७ अब तक प्रकाशित सस्करण । संग्रहका विवरण : 1 इस सग्रह (१) श्रीमद्जी द्वारा मुमुक्षुओको लिखे गये पत्र, (२) स्वतंत्र काव्य, (३) मोक्षमाला, भावनाबोध, आत्मसिद्धिशास्त्र ये तीन स्वतंत्र ग्रन्थ, (४) मुनिसमागम, प्रतिमासिद्धि आदि स्वतत्र लेख, (५) पुष्पमाला, बोधवचन, वचनामृत, महानीति आदि स्वतंत्र बोधवचनमालायें, (६) ‘पचास्तिकाय’ ग्रन्थका गुजराती भाषान्तर, (७) श्री रत्नकरड श्रावकाचारमेसे तीन भावनाओका अनुवाद तथा स्वरोदयज्ञान, द्रव्यसंग्रह, दशवेकालिक आदि ग्रन्थोमेसे कुछ गाथाओका भाषान्तर, आनन्द घनचौबीसीमे से कुछ - एक स्तवन के अर्थ, (८) वेदात और जैनदर्शन सम्बन्धी टिप्पणियाँ, (९) स० १९४६ को देनंदिनी आदि श्रीमद्जीके लेख आक १ से ९५५, पृष्ठ ६७२ तक दिये गये हैं। आक ७१८ मे आत्मसिद्धिशास्त्र के दोहोका श्री अवालालभाई कृत सक्षिप्त विवेचन दिया गया है जिसे श्रीमद्जी देख गये थे। उस विवेचनके साथ खुद श्रीमद्जीका लिखा हुआ किसी-किसी दोहेका विस्तृत विवेचन भी दिया गया है । पृष्ठ ६७३ से ८०० तक उपदेशनोव, उपदेशछाया, व्याख्यानसार १ और २ दिये गये हैं जो श्रीमद्जी के उपदेश और व्याख्यानकी मुमुक्षुओ द्वारा की गई नोध पर आधारित है । इसमेसे 'उपदेशछाया' शीर्षकातर्गत बोध श्रीमद्जीकी नजरसे निकल चुका है ऐसा सुना जाता है । पृष्ठ ८०१ से ८४९ तक श्रीमद्जीको स्वहस्तलिखित तीन संस्मरण-पोथियाँ (Diaries) दी गई है। इस संस्करण संबंधी सामान्य विवरण : १ इस सस्करणमे, पूर्व संस्करणोमे अप्रकाशित ऐसा बहुतसा साहित्य समाविष्ट कर लिया गया है । २ मूल लेख - जितना श्रीमद्जीका स्वय लिखा हुआ प्रतीत हुआ उतना ही लिया है। पूर्व सस्करणोमे मूल लेखरूपमे प्रकाशित, किन्तु वस्तुतः उपदेशनोध होनेसे ऐसे लेख वर्तमान संस्करणमे उपदेशनोधके अतर्गत दिये है ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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