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________________ परिशिष्ट ५ अलौकिक -- लोकोत्तर, अद्भुत, अपूर्व, असाधारण, दिव्य | अल्पज्ञ - कम समझा, तुच्छ बुद्धिका, थोडा ज्ञान रखनेवाला । अल्पभाषी- -कम बोलनेवाला । अवगत - ज्ञात, जाना हुआ । अवगाह - व्याप्त होनेका भाव । अवगाहन - अध्ययन; पढना-विचारना, गहन अभ्यास करना । अवग्रह - आरभका मतिज्ञान । मतिज्ञानका एक भेद । (देखें जैन सिद्धातप्रवेशिका ) अवधान - एक समयमें अनेक कार्यों में उपयोग देकर स्मरणशक्ति तथा एकाग्रताकी अद्भुतता बताना । ( आक १८ ) अवधिज्ञान - जो ज्ञान द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी मर्यादासहित रूपी पदार्थको जाने । 1 अवनी - पृथ्वी, जगत | अवबोध - ज्ञान । अवर्णवाद - निन्दा | अवशेष - बाकी | अवसर्पिणीकाल5- उतरता हुआ काल, जिसमें जीवोकी शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती जाय । दस कोडाकोडी सागरका यह काल होता है । अवाच्य - न कहने योग्य; जो न कहा जा सके । अविवेक -- विचारशून्यता; सत्यासत्यको न समना । अव्याबाधवाचा, पीडारहित । अशातना - अविनय । अशुभ- - खराव । अशौच - मलिनता । अश्रद्धा - अविश्वास । अष्टमभक्त - तीन उपवास । अष्टावक्र - एक ऋषिका नाम । जनक राजाको ज्ञान देनेवाले । अष्टागयोग - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ये योगके आठ अग । असाता - दुख । असग - मूर्च्छाका अभाव, पर द्रव्यसे मुक्त; परिग्रहरहित । असंगता - आत्मार्थके सिवाय सगप्रमगमे नही पडना ( आक ४३०, ६०९) । असयतिपूजा -- जिसे ज्ञानपूर्वक सयम न हो उसकी पूजा । असयम - उपयोग चूक जाना ( उपदेशछाया) असिपत्रवन - नरकका एक वन, जिसके पत्ते शरीर पर गिरनेसे तलवारकी भाँति अगोको छेद देते हैं । असोच्याकेवली - केवली आदिके निकट धर्मको सुने विना ( असोच्चा = अश्रुत्वा ) जो केवलज्ञान पावे । ( आक ५४२) अस्त - छिपा हुआ, तिरोहित, अदृश्य, नष्ट, डूबा हुआ । अस्ति - सत्ता, विद्यमानता, होनेका भाव । अस्तिकाय - बहुत प्रदेशोवाला द्रव्य । अस्तित्व - मौजूदगी, सत्ताका भाव । अहता -- अहकार, गवं । अहंभाव -- मैं - पनेका भाव, अभिमान । अंतरग -- अन्दरका । 1 अंतरात्मा - सम्यग्दृष्टि, ज्ञानी आत्मा । अंतराय - विघ्न, बाधा | अंतर्ज्ञान - स्वाभाविक ज्ञान, आत्मिक ज्ञान । अंतर्दशा - आत्माकी दशा । अशरीरी - जिसे शरीरभावका अभाव हो गया है, अतर्धान- लोप, छिपाव । आत्ममग्न, सिद्ध भगवान । ८९५ अंतर्दृष्टि - आत्म दृष्टि, ज्ञानचक्षु | अतर्मुख - आत्मचिंतन, जिसका लक्ष्य अदरकी ओर हो । अंतर्मुहूर्त - एक मुहूर्तके भीतरका काल (एक मुहूर्त : दो घडी, ४८ मिनिट), एक मुहूर्तमें कम समय । अंतर्लापिका ---ऐसी काव्यरचना कि जिसके अक्षरोको अमुक प्रकारसे लगानेपर किसीका नाम या दूसरा अर्थ निक्ले । अतवृत्ति - अन्दरका वर्तन, आत्मामें वृत्ति । अंत. करण - मन, चित्त, अन्दरको इन्द्रिय | अंत. पुर - महलके भीतर स्त्रियोंके रहने की जगह, रानिवात ।
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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