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________________ दोहा ज्या ज्या जे जे योग्य छे ज्या प्रगटे सुविचारणा झेर सुधा समजे नही ते जिज्ञासु जीवने ते ते भोग्य विशेषना तेथी एम जणाय छे त्याग विराग न चित्तमा दया शाति समता क्षमा दर्शन षटे समाय छे दशा न एवी ज्या सुधी देवादि गति - भगमा देह छता जेनी दशा देह न जाणे तेहने देह मात्र सयोग छे 'देहादिक सयोगनो नयी दृष्टिमा आवतो नय निश्चय एकातथी नहि कषाय उपशातता निश्चय वाणी साभळी निश्चय सर्वे ज्ञानीनो परम बुद्धि कृष देहमा पाचे उत्तरथी थयु पाचे उत्तरनी थई प्रत्यक्ष सद्गुरुप्राप्तिनो प्रत्यक्ष सद्गुरुयोगयी प्रत्यक्ष सद्गुरुयोगमा 'प्रत्यक्ष सद्गुरु सम नही . फळदाता ईश्वर गण्ये •. फळदाता ईश्वरतणो बाह्य क्रियामा राचता बाह्य त्याग पण ज्ञान नहि वीजी शका थाय त्या वध मोक्ष छे कल्पना भावकर्म निज कल्पना भास्यो देहाध्यासथी भोस्यो देहाध्यायी , परिशिष्ट २ · क्रमांक पृष्ठ ८-५३६ ४१-५४६ ८३-५५७ १०९-५६१ ८६-५५७ ९५-५५९ ७-५३५, १३८-५६५ १२८-५६४ ३९-५४५ २७-५४४ १४२-५६६ ५३-५४७ ६२-५४९ ९१-५५८ ४५-५४६ १३२-५६४ ३२-५४४ १३१-५६४ ११८-५६२ 1 वोहा भास्यु निजस्वरूप ते मतदर्शन आग्रह तजी + छे नहि आमा माटे मोक्ष उपायनो मानादिक शत्रु महा मुखी ज्ञान कथे अने मोहभाव क्षय होय ज्या मोक्षको निज शुद्धता राग द्वेष अज्ञान ए रोके जीव स्वच्छद तो लह्य स्वरूप न वृत्तिनु लक्षण कह्या मतार्थीना वर्तमान आ काळमा वर्ते निज स्वभावनो वर्धमान समकित थई वळी जो आत्मा होय तो वीत्यो काळ अनत ते वैराग्यादि सफळ तो शुद्ध बुद्ध चैतन्यघन शुभ करे फळ भोगवे शुप्रभुचरण कने व पट्पदना पट् प्रश्न तें पट् स्थानक समजावीने षट् स्थानक सक्षेपमा सकळ जगत ते एठवत् सद्गुरुना उपदेश वण सर्व अवस्थाने दि सद्गुरुना उपदेशथी सर्व जीव छे सिद्ध सम सेवे चरणने ५६-५४८ ९६-५५९ ९७-५५९ ३५-५४५ १६-५४२ २६-५४३ ११-५४१ ८०-५५५ ८५-५५७ ४-५३४ सद्गुरु २४-५४३ स्थानक पाच विचारीने ६०-५४८. स्वच्छद मत आग्रह तजी ५-५३५ होय कदापि मोक्षपद ८२-५५६ होय न चेतन प्रेरणा ४९-५४७ होय मतार्थी तेहने ५०-५४७ हो मुमुक्षु जीव 35 ८६३ क्रमांक पृष्ठ १२०-५६३ ११०-५६१ ४८-५४७ ७३-५५२ १८-५४२ १३७-५६५ १३९-५६५ १२३-५६३ १००-५६० १५-५४२ २८-५४४ ३३-५४५ २-५३४ १११-५६२ ११२-५६२ ४७-५४६ ९०-५५८ ६-५३५ ११७-५६२ ८८-५५८ १२५-५६३ १०६-५६१ १२७-५६४ ४४-५४६ १४०-५६६ १२-५४१ ५४-५४७ ११९-५६३ १३५-५६५ ९-५३६ १४१-५६६ २७-५४२ ९२-५५९ ७४-५५२ २३-५८३ २२-५४३
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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