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________________ प्रभिन्नक चित्रालंकार - कोई सुकोमल बुद्धि वाले कवि एक ही प्रकार के अर्थ भेद से प्रभिन्नक चित्रालकार की रचना करते है, पर आचार्यों ने इस पक्ष को मान्यता नहीं दी है।' शब्द और अर्थ के भेद से प्रभिन्नक की रचना अवश्य करनी चाहिए । वचन, लिग और विभक्तियों के भेद को भी यथाशक्ति कहना चाहिए । भेद्यभेदक चित्रालकार - जिस प्रश्न मे विशेषण और विशेष्य का निबन्धन किया गया हो - विद्वानों ने उसे भेद्य-भेदक चित्रालकार कहा है । ओजस्वी जाति - चित्रालंकार का लक्षण - जब लम्बे स्मास वाले पद से प्रश्न किया गया हो और अल्पावर पद से उत्तर दिया गया हो ते उसे दुख दूर करने वाले पण्डितों ने ओजस्वी अलकार कहा है 14 'सालंकार' चित्रालंकारः जिसमे उपमा, रूपक आदि अनेक अलकारों की स्पष्ट प्रतीति हो, उसे विद्वान कवियों ने सालकार चित्र कहा है । कौतुक चित्रालंकार - लवृत्त द्वारा प्रश्न किये जाने पर अधिक अक्षरों द्वारा जो उत्तर दिया जाय, विषयज्ञ विद्वानों ने कुतूहल उत्पन्न करने वाले उस पद को कोतुक चित्र कहा है। वही - 2/27 वही - 2/29 वही - 2/30 अचि0 - 2/32 अचि0 - 2/34 वही - 2/37
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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