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________________ काव्यारम्भ का नियम 1 अजितसेन के अनुसार काव्य का आरम्भ मगलाचरण से करना चाहिए । यह मगलाचरण आशीर्वादात्मक, नमस्कारात्मक और वस्तु-निर्देशात्मक त्रिविध प्रकार का होना चाहिए । यदि त्रिविध प्रकार का मंगल सभव न हो तो ग्रन्थादि मे मंगलाचरण करना नितान्त आवश्यक है । महर्षि पतञ्जलि ने भी मगलाचरण की उपयोगिता के विषय मे यह निर्देश दिया था कि मगल से आरम्भ होने वाले शास्त्र प्रसिद्धि को प्राप्त करते है । उनसे सम्बद्ध पुरुष वीर तथा आयुष्यमान होते है एव अध्येताओं की अभिलाषा पूर्ण होती 12 यद्यपि आचार्य अजितसेन ने मगलाचरण की चर्चा करके कवि को मगलाचरण की शिक्षा दी है तथापि इनका यह विचार पूर्व आचार्यों द्वारा अनुमोदित रहा है क्योंकि भामह, दण्डी रुद्रट, मम्मट आदि आचार्यो ने अपने ग्रन्थों के आरम्भ मे मगलाचरण की परम्परा का पालन किया है । 3 मंगलाचरण की शिक्षा के पश्चात् आचार्य अजितसेन ने यह भी सुझाव दिया है कि काव्य का प्रारम्भ स्वरचित छन्द या गद्य से यदि किया जाये तो उसे निबन्ध और अन्य आचार्यों द्वारा रचित छन्द या गद्य से किया जाए तो अनिबद्ध कहा जायेगा । इसके अतिरिक्त इन्होंने यह भी बताया है कि कवि को कभी I - 2 3 (क) निबद्धमनिबद्ध वा कुर्यात्काव्यमुख कवि । आशीरूप नमोरूप वस्तुनिर्देशन च वा ।। (ख) स्वकाव्यमुखे स्वकृत पद्य निबद्ध परकृतमनिबद्धम् । अ०चि० मागलिक आचार्यों महताशास्त्रौघस्यमगलार्थसिद्धशब्दमादित प्रयुते । मगलादीनि हि शास्त्राणि प्रथन्तें वीरपुरुषाणि च भवन्ति आयुष्मत्पुरुषाणि चाध्येतारश्च सिद्धार्था यथा स्युरिति । महाभाष्य प्रथमाह्निक - - भामह - काव्यालकार - 1/1 दण्डी काव्यादर्श मम्मट - काव्यप्रकाश - 1/1 - नमस्कारात्मक, काव्यलकार 1/1, रुद्रट - - 1/1 - 1/97 उत्तरार्ध
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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