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________________ प्रवर कवियों द्वारा गण अथवा वर्ण से भी भद्र, मंगल आदि अर्थ के प्रतिपादन करने वाले शब्द अशुभ फलप्रद नहीं माने गये । अत वे काव्यादि मे निन्द्य नहीं है । योगी ने 'अलकारसग्रह' मे किया है । पर्याप्त समानता दृष्टिगोचर होती है 1 2 नाम यगण मगण तगण रगण जगण भगण नगण सगण 1 आचार्य अजितसेन द्वारा प्रतिपादित उक्त विषय का वर्णन आचार्य अमृतानन्द उक्त विषय के वर्णन मे दोनों आचार्यो मे 2 स्वरूप ISS 555 ऽऽ। SIS ISI ऽ।। 111 IIS गणदेवता और फलबोधक चक्र देवता जल पृथ्वी आकाश अग्नि सूर्य चन्द्रमा स्वर्ग वायु फल आयु लक्ष्मी शून्य दाह रोग यश सुख विदेश प्रत्येक तु गणा ज्ञेयास्सदसत्फलदा यथा । याद्धन राच्चभीदाहो त शून्यफलदोमत ।। भात्सुख जाद्गुजा सात्रु क्षयो रैशुभदौ नमौ । वदन्ति देवताशब्दा भद्रादीनि चयेतु गणाद्वा वर्णतोऽवाऽपि नैव निन्द्या कवीश्वरै । एतद्वर्वाभिविन्यास काव्य पद्मादितस्त्रिधा ।। 11 यो वारिरूपो धनकृद्रोऽग्निर्दाहभय कर । ऐश्वर्यदो नाभसस्तो भ सौम्य सुखदायक ॥। ज सूर्यो रोगद प्रोक्त सो वायव्य क्षयप्रद । शुभदो मो भूमिमयो नो गौर्धनकरो मत 11 शुभाशुभत्व शुभ शुभ अशुभ अशुभ अशुभ शुभ शुभ अशुभ अ०चि0-1/93-96 अलकार संग्रह - 1/33-34
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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