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________________ के प्रयोग के विषय मे भी निर्देश दिया है । इस परम्परा का परिपालन करने से काव्यपाठ की सन्तुति व सम्पत्ति का विनाश नहीं होता । ने भी अजितसेन के उक्त विचार से सहमत है । 2 अमृतानन्दयोगी वर्षों का शुभाशुभत्व विवेचन झ, ज, च, छ, ट, ठ, ढ, ण, थ, प, फ, ब, भ, म, र, ल, व और द मे ये वर्ण अ और क्ष के बिना अन्य वर्णों के साथ सयुक्त रहने पर काव्यादि मे इनका प्रयोग अशुभ माना जाता है तथा उक्त वर्षो के अतिरिक्त अन्य वर्षो का सयोग काव्यारम्भ मे शुभकारक होता है । 3 इस विषय पर अमृतानन्दयोगी ने भी अपने विचार व्यक्त किए है 14 अजितसेन तथा अमृतानन्दयोगी दोनों ही आचार्यों ने बिन्दु, विसर्ग, जकार, अकार को पादादि मे व्याज्य बताया है । 5 1 2 3 4 5 वर्णभेदविजानीयात्कवि काव्यमुखेपुन । सवर्ण सद्गण कुर्यात्सपत्सतानसिद्धये ।। वर्ण्यवर्णक्कयोर्लक्ष्मी शीघ्रमेवोपजायते । अन्यथैतद्द्वयस्यापिदु खसततिरञ्जसा ।। अ०चि0-1/84-85 वर्ण गण च काव्यस्य मुखे कुर्यात्सुशोभनम् । कर्तृनायकयोस्तेन कल्याणमपि जायते ।। अलकारसग्रह 1/23 अन्यथानिष्टसपत्तिरनयोरेव सभवेत् । झाज्जाच्चाच्छाट्टट्ठाभ्या ढणथपबभमैराल्लवात्पाद्दलाभ्याम् । सयुक्तेऽक्ष विना स्यादशुभमितरतो वर्णतोभद्रमिद्धम् ।। आभ्यां भवति सप्रीतिर्मुदीभ्याधनमूद्वयात् । ऋभ्या लृभ्यामपख्यातिरेच सुखकरा मता 11 (क) बिन्दु सर्गो पदादी न कदाचन जजोपुन । भषान्तावपि विद्यते काव्यादौ न कदाचन ।। (ख) बिन्दुसर्ग आ. सन्ति पदादौ न कदाचन । चतुर्भ्य कादिवर्णेभ्यो लक्ष्मीरपयशस्तु चात् ।। अचि - 1/85 1/2 अ०स० अ०चि० - - अलकारसग्रह - 1/25 1/87 1/26
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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