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________________ गार्ग्य निरुक्त कार यास्क से भी प्राचीन माने जाते है । इनके अनुसार उपमा वहाँ होती है जहाँ एक वस्तु दूसरी वस्तु से भिन्न होते हुए भी उसी के सदृश हो ।' साख्यसूत्र मे तो उपमाओं का प्रयोग आख्यायिकों के सन्दर्भ मे बहुलता से हुआ है 12 पाणिनि और उपमा - पाणिन की अष्टाध्यायी मे उपमा, उपमान, उपमिति तथा समान्य शब्दों का प्रयोग भी है जो अलकारशास्त्र के पारिभाषिक शब्द है । उपर्युक्त उद्धरणों से विदित होता है कि अलकार, रस, गुण आदि सम्पूर्ण काव्य तत्वों की उपलब्धि वाड्.मय मे होती रही किन्तु इस प्रकार का कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध नही होता था जिसमे इन तत्वों का निरूपण हुआ हो, अत इस परिस्थिति मे भरत मुनि का नाट्यशास्त्र ही आदि उपलब्ध प्रथम ग्रन्थ है और उन्हे ही काव्य शास्त्र के आद्य आचार्य के रूप मे स्वीकार करना समीचीन प्रतीत होता है । आचार्य भरत के पश्चात् भामह, दण्डी, उद्र्भट, वामन, रुद्रट, आनन्द वर्धन कुन्तक, क्षेमेन्द्र, भोज , मम्मट, रूय्यक शोभाकर मिश्र, वाग्भट ,जयदेव, विद्यानाथ , विश्वनाथ , अप्पयदीक्षित, पण्डित राज जगन्नाथ तथा विश्वेश्वर पर्वतीय तक अर्थात् ईसा पूर्व 200 से 18 वी शती तक अविकल रूप से काव्य शास्त्रीय लक्षण ग्रन्थों का निर्माण होता रहा । ऐसे ही आचार्यो मे आचार्य अजितसेन अनन्यतम आचार्य थे जिन्होंने अलकार चिन्तामणि में काव्यशास्त्रीय सम्पूर्ण तत्वो का सोदाहरण निरूपण किया साड् गीण काव्यशास्त्रीय विषयों का प्रतिपादन होने के कारण इस पर अनुसन्धान करने की की अभिरूचि उत्पन्न हुई । अत मैने शोध प्रबन्ध को 8 अध्यायो मे विभक्त कर अनुसन्धान कार्य को प्रारम्भ किया । प्रथम अध्याय मे कवि का ऐतिहासिक परिचय, द्वितीय मे कवि शिक्षा निरूपण, तृतीय मे चित्रालकार, चतुर्थ मे शब्दालकार, पचम मे अलकारों का वर्गीकरण तथा उनकी समीक्षा की गयी है । निरू0 3/13
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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