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________________ आचार्य भोज ने यद्यपि काव्य के किसी स्वतन्त्र का विवेचना नहीं किया तथापि प्रासगिक उद्धरणों के अवलोकन से यह परिज्ञात होता है कि दोष-रहित गुण सहित अलकारों से अलकृत तथा रसान्वित काव्य ही कवि को कीर्ति व प्रीति प्रदान करने में समर्थ हो सकता है । कीर्ति तो काव्य प्रणेता को ही प्राप्त होगी। उक्त विचारों का अवलोकन करने से यह विदित होता है कि ये शब्दार्थ युगल मे काव्यत्व स्वीकार करते है । अन्यथा 'अलकारै' मे बहुवचन के प्रयोग की आवश्यकता नहीं थी ।' 'सरस्वती कण्ठाभरप' मे इन्होंने शब्दालकार, अर्थालकार तथा उभयालकार का निरूपण भी किया है । आचार्य मम्मट दोष-रहित, गुण सहित और कहीं - कहीं अलकारों के अभाव मे भी शब्दार्थ समष्टि को काव्य के रूप मे स्वीकार किया है ।2 मम्मट कृत परिभाषा मे निम्नलिखित तत्वों का आधान हुआ है - काव्य मे दोषों का अभाव गुणों की योजना अलकारों का सन्निवेश मम्मट कृत काव्य लक्षण मे यह शका उठाई जा सकती है कि इन्होंने काव्य लक्षण मे रसों की कोई चर्चा नहीं की है तो क्या मम्मट के अनुसार रस से संकलित काव्य अकाव्य है ? इसके समाधान मे यह स्वीकार करना पडेगा कि वह अकाव्य नहीं अपितु काव्य ही है । क्योंकि जब गुण को रस के धर्म के रूप मे स्वीकार करेगे तो इस शंका का समाधान स्वत हो जाएगा, क्योंकि रसों के धर्म के रूप मे गुणों का उल्लेख मम्मट ने स्पष्ट रूप से कर दिया है । अत निर्दोष गुणवत्काव्यम्मलड् कारैरलड् कृतम् रसान्वित कवि कुर्वन् कीर्ति प्रीति च विदति । सरस्वतीकण्ठाभरप - 1/2 पृ0 24 तददोषौ शब्दार्थो सगुणावनलड् कृती पुन क्वापि । का0प्र0 1/4 2
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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