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________________ उपसंहार प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में अलकार चिन्तामपि में निखपित सर्वांगीण विषयों के समीक्षात्मक अध्ययन से विदित होता है कि आचार्य अजित्सेन नाट्यशास्त्रीय विषयों को छोडकर काव्यशास्त्र के समस्त विषयों का प्राय निरूपण किया है । इनकी निरूपप शैली अत्यन्त सरल सुबोध मार्मिक तथा संक्षिप्त होते हुए भी काव्य शास्त्र के विषयों को पूर्ण रूप से प्रतिपादन करने में समर्थ है । इस ग्रन्थ में काव्य स्वरूप, काव्य हेतु तथ काव्य प्रयोजन के अतिरिक्त रस, अलकार, गुण, दोष, रीति, वृत्ति तथा नायक और नायिकाओं के स्वरूप को भी प्रतिपादन किया गया है । यहाँ तक कि कवि समय तथा समस्या पूर्त जैसे विषयों पर भी अजितसेन ने विचार किया है । प्रत्येक विषयों के लक्षण इनके द्वारा स्वय निर्मित हैं किन्तु लक्ष्य रूप मे निबद्ध उदाहरणों को प्राचीन पुराण ग्रन्थों, सुभाषित ग्रन्थों तथा स्तोत्रों से उद्धृत किया है - अत्रोदाहरणं पूर्वपुराणादिसुभाषितम् । पुण्यपूरुषसस्तोत्रपर स्तोत्रमिद तत. ।। अचि0, I/5 इनके ग्रन्थ पर भामह, दण्डी, भोज, मम्मट तथा वाग्भट का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होत है । कतिपय दोषों पर भामह का स्पष्ट प्रभाव है । उपमा के भेद निरूपण के सन्दर्भ में दण्ड द्वारा निरूपित उपमा क्रम से भेदों का निरूपण किया है । इन्होंने भोज द्वारा निरूपित 24 गुणों का भी उल्लेख किया है जिनपर भोज का स्पष्ट प्रभाव है । दोष निरूपण के सन्दर्भ में आचार्य मम्मट का स्पष्ट प्रभव है । काव्य के भाषागत भेदों को आचार्य वाग्भट से अक्षरस सत्रहीत भी कर लिया ।' नायिका के भेदादि के विक्चन पर नाट्यशास्त्र तथा दशरूपक का प्रभाव है । किन्तु इन्होंने वाग्भट के कतिपय पद्यों के अतिरिक्त अन्य किसी संस्कृत प्राकृत तस्यापभ्रशों भूत भषितम् । , इति भाषाश्चतस्रोऽपि यान्ति काव्यस्य कायताम् ।। संस्कृत स्वर्गिणा भाषा शब्दशात्रेषु निश्चिता । प्राकृतं तज्जतत्तुल्यदेश्यादिकमनेकधा ।। अपभ्रशस्तु यच्छुद्ध तत्तद्धेशेषु भषितम् । यदभूतैरूच्यते किंचित्तभौतिकमिति स्मृतम् ।। अचि0, 2/119, 20, 21 तुलनीय - वाग्भटालकार 2/1-4
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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