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________________ अभाव में नायिका स्वय दूती का कार्य करती है ।' अमृतानन्दयोगी भी अजित सेन के विचारों से सहमत हैं । दशरूपककार का भी यही विचार है । स्त्रियों के 20 अलकार स्वीकार किए गए हैं जो युवावस्था मे सात्विक भाव से उत्पन्न होते हैं । इनमें भाव- हाव- हेला, तीन को आंगिक अलकार के रूप मे स्वीकार किया गया है । शोभा, कन्ति दीप्ति, प्रगल्भता, माधुर्य , धैर्य और औदार्य, लीला, विलास ललित, किलकिचत, विभ्रम कुट्टमित मोट्टायित विब्बोक विहृत तथा सत्वज, भावहाव, हेला ये 20 अलकार हैं । उपर्युक्त गुणों में से भाव, हाव तथा हेला को आंगिक अलंकार के रूप में स्वीकार किया गया है । शोभा, कन्ति, दीप्ति माधुर्य, प्रगल्भता, औदार्य तथा धैर्य ये सात अयत्न समुद्भूत हैं । शेष दश स्वाभाविक अलंकार के रूप में स्वीकार किए गए हैं । इनका स्वरूप इस प्रकार है भाव. मन की वृत्ति को सत्व और विशेष को विकृतिच्युति तथा भविष्य में शोभा बढाने वाली प्रभृति विकृति को भाव कहते हैं । हाव. मन से उत्पन्न स्त्रियों के विविध श्रृंगार को भाव और काम से उत्पन्न आंख या भैहों के विकार को हाव कहते हैं । हेला - श्रृगार के प्रकाशक व्यक्त हाव ही हेला है । लिगिनी शिल्पिनी दासी धात्रेयी प्रतिवशिनी । कारू सख्यो सुदूत्य स्युस्तदभावे स्वयमता ।। अ०चि0, 5/376 का अ0स0, 4/40 ख) द0रू0, 2/29, प्रताप0 नायक प्रकरण, श्लोक - 55 अचि0, 5/377, 378, 379 अचि0, 5/380 से 5/402 तक ।
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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