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________________ कर लिया है। इनके निरूपण. क्रम में किंचित् अन्तर अवश्य है इन्होंने प्रत्येक गुण के लक्षण तथा उदाहरण भी प्रस्तत किए है ।। अजितसेन के अनुसार गुणों का स्वरूप. 11 श्लेष, 2 भाविक, 30 सम्मितत्व, 4 समता, 5 गाम्भीर्य, 06 रीति, 7 उक्ति, 18 माधुर्य, 90 सुकुमारता, 10 गति, 110 समाधि, 112% कान्ति, 13 अर्जित्य 14 अर्थव्यक्ति, 15 उदारता, 16 प्रसदन, 1170 सौक्ष्म्य, 18| ओजस्, 119 विस्तर, 20f सूक्ति, 210 प्रौढि, 0220 उदात्तता, 1230 संक्षेपक और 240 प्रयान् । 810 श्लेष - भाविक और सम्मितत्व: जहाँ अनेक पदों की एक पद के समान स्पष्ट प्रतीति हो वहाँ श्लेप नुप होता है । जहाँ वाक्य भाव से रहे उसे भाविक कहते हैं । जितने पद उतने ही अर्थ जिसमें समाहित हो उसे सम्मितत्व कहते हैं। समठा. रचना में विषमताहीन कथन को समता कहते हैं । गम्भीर्य और रीति:- ध्वनिमत्व को गम्भीर्य कहते हैं और प्रारब्ध की पूर्तिमात्र को रीति कहते हैं। उक्तिः जो काव्यकुशल कवियों की भणिति है उसे उक्ति कहते हैं। माधुर्यः- पढने के समय और वाक्य में भी जो पृथक् - पृथक् पद से प्रतीत होते है विद्वानों ने उन्हें माधुर्य उप कहा है। सुकुमारताः अनुस्वार सहित अक्षरों की कोमलत को सुकुमारता कहते हैं । यतिः जहाँ स्वर के आरोह-अवरोह दोनों ही सुन्दर हो वहाँ गति नामके गुण होता है । समधिःसमाधिः जहाँ दूसरे धर्म का दूसरी जगह आरोप किया जाये वहाँ स्माधि गुण होता है । Jio 1110 अचि0, 5/269 वही, पृ0 299 से 308 तक | 2.
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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