SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रूप अश्लीलता की अदोषता स्वीकार की गयी है ।' विस्मय के अर्थ में पुनस्क्तता दोष नहीं होता 12 गुण-विवेचन - आचार्य भरत ने दोपों का निरूपण करते हुए कहा है कि दोषों के विपरीत जो कुछ वस्तु है, वह गुण है । अग्निपुराणकार का कथन है कि काव्य मे अत्यधिक शोभा को जन्म देने वाली वस्तु शब्द गुण है । शब्द प्रतिपाद्य जिस किसी वस्तु को उत्कृष्ट बनाने वाली चीज अर्थगुण है और शब्द तथा अर्थ दोनों का जो उपकारक हो, वह शब्दार्थाभय गुप कहा जाता है । आचार्य दण्डी के अनुसार 'गुण वैदर्भ मार्ग के प्राण हैं' ।' आचार्य वामन ने गुण का लक्षण प्रस्तुत करते हुए कहा है कि 'काव्यशोभाकारक धर्म गुप है' 18 आचर्य वामन ने कहा है कि काव्य - शोभ के जन्मदायक धर्म गुण है और उस शोभा को अतिशयित करने वाला धर्म अलकार है। आचार्य मम्मट के अनुसार आत्मा के शौर्याद के समान काव्य मे अगीभूत रस के उत्कर्षाधायक धर्म गुप हैं । काव्य में इनकी अचल स्थिति स्वीकार की गयी है ।10 आचार्य अजितसेन ने कुपों के स्वरूप का उल्लेख नहीं किया है अपितु इन्के भेदों का ही उल्लेख किया है अत गुणों के भेद के विषय में विचार कर लेना अनुपयुक्त न होगा। वही, 5/65 वही, 5/66 पृ0 297 से 298 तक । एत एव विपर्यस्ता गुणा. काव्येषु कीर्तिता. । नाOशा0, 17/95 का उत्तरार्ध य. काव्ये महतीं छायामनुगृह णाति असौ उप । अ0पु0, अ0-346/3 अ0पु0, 346/11 वही, 346/18 इति वैदर्भमार्गस्य प्राणादश गुणा स्मृता । का0द0, 1/42 काव्यशोभाया कर्तारो गुणा. । अ०सू०, 3/1/1 काव्यशोभाया कर्तारोगुणा. तदतिशयेहतस्त्वलंकारा. । अ०सू0, 3/1/1 व 2 ये रस्स्यागिंनो धर्मा शौर्यादय इवात्मन । उत्कर्षहतवस्तेस्युरचलस्थितयोः गुणा. ।। का0प्र0, 8/66
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy