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________________ प्रकार का वर्णन किया जाए जिसमे सत्व गुण का प्राधान्य हो तो वहाँ सात्वती वृत्ति होती है । इसमे शोक का अभाव तथा हर्ष का आधिक्य निहित रहता है । धनञ्जय ने भी भरत के लक्षण का ही अनुगमन किया है । 2 आचार्य अजितसेन की परिभाषा किंचित् भिन्न है इनके अनुसार जिस रचना में वीर और भयानक रस को साधारण प्रौढ सन्दर्भ से वर्णित किया जाए वहाँ सात्वती वृत्ति होती है । 3 इनके पूर्ववर्ती आचार्यों ने भयानक रस मे सात्वती वृत्ति का उल्लेख नहीं किया । आरभटी वृत्ति का स्वरूप - आचार्य भरतमुनि भयानक, बीभत्स तथा रौद्र रस में आरभटी वृत्ति को स्वीकार करते है 14 आचार्य धनञ्जय के अनुसार माया, इन्द्रजाल, सग्राम, क्रोध, उद्भ्रान्ति आदि चेष्टाओं में आरभटी को स्वीकार किया गया है । धनञ्जय ने रौद्र तथा बीभत्स रस में आरभटी स्वीकार किया है 15 अजितसेन अत्यन्त प्रौढ़ सन्दर्भों से युक्त रौद्र और बीभत्सरस मे आरभटी वृत्ति को स्वीकार किया है 10 भारती वृत्ति का स्वरूपः - आचार्य भरत ने करूण तथा अद्भुत रस में भारती वृत्ति को स्वीकार किया है ।7 संस्कृत भाषा में नट द्वारा किया गया वाचिक व्यापार भारती वृत्ति के रूप में स्वीकार किया गया है । 8 अनुसार जिस सुकुमार सन्दर्भ में हास, शान्त और अद्भुत रस भारती वृत्ति होती है । आचार्य अजितसेन के का वर्णन हो वहाँ 1 2 3. 4 5. 6 7 8. 9 ना०शा०, 22 / 38, 39 द0रू0, 2/53 ईषत्प्रौढौ निरूप्येते यत्र वीरभयानको । अनतिप्रौढसदर्भात्सात्वतीवृत्तिरुच्यते ।। अचि0, 5/164 नाशा0, 23/66 का पूर्वाद्ध द0रू0 2/56 तथा 62 वर्ण्यते रौद्रबीभत्स रसौयत्रकवीश्वरै । अतिप्रौढैस्तु संदर्भर्भवदारभटी यथा ।। 300, 5/162 ना०शा0, 23/66 FOTO, 3/5 हास्य शान्ताद्भुता ईषत्सुकुमारनिरूपिता । यत्रेषत्सकमारेण संदर्भेण हि भाग्नी । ।
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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