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________________ मे एकावली अलकार को माना है ।। आचार्य भोज इसे परिकर से अभिन्न स्वीकार करते है और इसकी स्थिति शब्दगत्, अर्थगत तथा उभयगत मानते है । 2 आचार्य मम्मट कृत परिभाषा पर रुद्रट का प्रभाव है । इनके अनुसार जब पूर्व - पूर्व वस्तु के प्रतिउत्तरोत्तर वस्तु विशेषण रूप से स्थापित की जाए या हटायी जाए तो वहाँ एकावली अलकार होता है । 3 आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ पूर्व- पूर्व वर्णित वस्तु के लिए उत्तरोत्तर वर्णित वस्तु का विशेषण रूप से क्रमश विधान किया जाए वहाँ एकावली अलकार होता है 14 इन्होंने स्थापन तथा अपोहन पद का उल्लेख नहीं किया है । शेष अंशों में इनकी परिभाषा मम्मट के समान है । आचार्य रूय्यक और विद्यानाथ तथा जगन्नाथ कृत परिभाषा अजितसेन के समान है 5 जबकि जयदेव और दीक्षित क्रमिक रूप से ग्रहण किए गए और मुक्त किये गये पदार्थों मे एकावली स्वीकार करते हैं 16 मालादीपक - माला दीपक का सर्वप्रथम उल्लेख काव्यादर्श मे प्राप्त होता है 1 जहाँ पूर्व-पूर्व वाक्य की अपेक्षा करने वाली वाक्यमाला का प्रयोग हो वहाँ मालादीपक 1 2 3 4 5 6 काव्या0, 7/109 स०क०भ०, 4/76 1090, 10/131 यत्रोत्तरोत्तर पूर्वं पूर्वं प्रति विशेषणम् । क्रमेण कथ्यते त्वेकावल्यलंकार इष्यते ।। (क) यथापूर्वं परस्य विशेषणतया स्थापनापोहने एकावली । (ख) प्रताप 571 ०ग०, पृ० - 624 (क) गृहीतमुक्तरीत्यर्थश्रेणिरेकावलीमता ।। (ख) गृहीतमुक्तरीत्यर्थश्रेणिरेकावलिर्मता ।। 31040, 4/327 अ०स०सू० 55 चन्द्रा0 5/88 कुव0, 105
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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