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________________ :: 210 :: आचार्य अजितसेन के अनुसार जहाँ शत्रु के वध में असमर्थ रहने पर शत्रु के सगी को दोष दिया जाए, वहाँ प्रत्यनीक अलकार होता है । इस अलकार मे जब कोई व्यक्ति समर्थ प्रतिपक्ष का निराकरण करने में असमर्थ हो जाता है तो तत्सम्बन्धी किसी अन्य व्यक्ति का निराकरण करे तो वहाँ प्रत्यनीक अलकार होता है । परवती आचार्यों की परिभाषाएँ मम्मट तथा अजितसेन के समान है 12 व्याधात: व्याघात अलकार का सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य रुद्रट ने किया । इनके अनुसार जहाँ दूसरे कारणों के विरोधी न होते हुए भी, 'कारण' कार्य का जनक नहीं होता वहाँ व्याघात अलकार होता है 13 ___ मम्मट के अनुसार जब किसी व्यक्ति के द्वारा जिस प्रयत्न से किसी कार्य को सिद्ध किया जाता है, उसी प्रयत्न से यदि कोई दूसरा व्यक्ति उस कार्य को उसके विपरीत कर दे, तो वहाँ व्याघात अलकार होता है 14 रुय्यक ने एक अन्य प्रकार के व्याघात की चर्चा की है इनके अनुसार सुकर्ता के साथ यदि कार्य के विपरीत क्रिया हो तो वहाँ भी व्याघात अलकार होता है । इनकी परिभाषा मम्मट से प्रभावित है 15 आचार्य अजितसेन के अनुसार - जो वस्तु जिस किसी कर्ता के द्वारा ----------------------- प्रत्यनीक रिपुध्वंसाशक्तो तत्सगिदूषणम् ।। अ०चि0, 4/309 का प्रत्यनीक बलवत शत्रो पक्षे पराक्रम ।। चन्द्रा0 5/99 खि तत्सम्बन्धित्व च सादृश्यादिसम्बन्धमूलम् । विम0, पृ0 206 (गप्रत्यनीक बलवत शत्रो पक्षे पराक्रम । कुव0, 119 घा प्रतिपक्षसम्बन्धिनतिरस्कृति प्रत्यनीकम् । र०म०, पृ0 - 665 रू0, काव्या0, 9/52 यद्यथा साधितं केनाप्यपरेप तदन्यथा । तथैव यद्विधीयेत् स व्यामत इति स्मृत '। का0प्र0, 10/138, 139 यथासाधितस्य तथैवान्येनान्यथाकरणं व्याघात. । अ0स0, पृ0 - 173
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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