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________________ अनुसार जहाँ अनुभावादि के द्वारा रत्यादि भावों की सूचना दी जाए वहाँ प्रेय अलकार होता है ।। आचार्य अजितसेन के अनुसार अत्यन्त अभिमत वस्तु के कथन मे प्रेयस् अलकार होता है । इनकी परिभाषा आचार्य दण्डी के समान है 12 आचार्य रुय्यक प्रियतर आख्यान के गुम्फन मे प्रेय अलकार स्वीकार किया है3 जबकि शोभाकर मित्र रसादि की अगता मे, जयदेव विश्वनाथ, अप्पय दीक्षित, भट्टदेव शकर पुरोहित तथा विश्वेश्वर पर्वतीय आदि भाव की परांगता मे इसकी स्थिति स्वीकार किया है । 4 उपर्युक्त विवेचन से विदित होता है कि प्रेय अलकार के सम्बन्ध मे विद्वानों की दो धाराएँ है । प्रथम धारणा उन आचार्यों की है जो प्रियतर आख्यान मे प्रेम अलकार को स्वीकार करते है इन आचार्यों मे भामह, दण्डी, उद्भट तथा अजितसेन है । द्वितीय धारणा उन आचार्यों की है जो भाव की परागता मे इसकी सत्ता स्वीकार करते है । इस परम्परा के प्रमुख आचार्य जयदेव, विश्वनाथ, अप्पय दीक्षित आदि है । रसवत्. 1 2 इस अलकार की उद्भावना आचार्य भामह ने की है । इनके अनुसार जिसमें श्रृंगारादि रसों की प्रतीति हो वहाँ रसवत् अलकार होता है । अलकारवादी आचार्य होने के कारण इन्होंने रसों का अन्तर्भाव रसवत् अलकार मे कर दिया 15 3 4 :: 20/ :: - 5 रत्यादिकाना भावानां अनुभावादि सूचनै । यत्काव्य वध्यते सद्भि तत् प्रेयस्वदुदाहृतम् ।। यत्रेष्टतरवस्तूक्ति सा प्रेयोऽलकृतिर्यथा । - अ०स०, सूत्र 83 (क) अ०र०, 109 तथा वृत्ति (ख) चन्द्रा0, 5/117 (ग) सा0द0, 10/96 (घ) कुव0, 170 - - (ड) अ०मं०, पृ० छ) कुव0, 170 (च) अ०प्र०, 116 रसवद्दर्शितस्पष्टशृगारादि रस यथा । 227 काव्या०सा०स०, 4/2 अ०चि०, 4/306 काव्या0 3/6
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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