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________________ जयदेव एव पण्डित राज जगन्नाथ कृत परिभाषा अजितसेन से प्रभावित है ।' समुच्चयः आचार्य रुद्रट के अनुसार यदि एक ही आधार मे द्रव्य, गुप, क्रिया रूप अनेक वस्तुओं का मुखावह अथवा दुखावह वर्णन हो तो वहाँ समुच्चय अलकार होता है । सुख-दु ख परक अनेक द्रव्यादि रूप वस्तुओं का जहाँ वर्णन होगा, वहाँ दूसरा समुच्चय होगा । दूसरे समुच्चय के तीन प्रकार है - । सद्योग [20 असद्योग, 13 सदसद्योग भिन्न आधार वाले मुण या क्रिया जब एक स्थान पर समान काल मे वर्णित हो, तो वहाँ तृतीय समुच्चय होता है । आचार्य मम्मट के अनसार समच्चय अलकार मे प्रस्तुत काये की सिद्धि के लिए एक साधक या कर्ता के होते हुए भी अन्य कारण की साधकता का भी वर्पन किया जाता है । अजितसेन के अनुसार जिसमे क्रिया तथा अम्लत्व आदि गुपों का साथसाथ वर्णन हो वहाँ समुच्चय अलकार होता है । समुच्चय अलकार में दो क्रियाओं का अथवा दो गुणों का एक ही साथ वर्णित होना आवश्यक है । एक ही कार्य को सिद्ध करने के लिए जहाँ अनेक कारणों की उपस्थिति अहमहमिकया रूप से हो वहाँ समुच्चय अलंकार होता है । का प्रताप०, पृ0 - 554 खि एकावली, 8/57 गई चन्द्रा0, 5/96 (घ) र0म0, पृ0 - 657 डि सा0द0, 10/83 च कुव०, ।।4 रू0, काव्या0, 7/19-27 तत्सिद्धिहेतावकस्मिन् यत्रान्यत्तत्कर भवेत् समुच्ययोसौ । का0प्र0, 10/116 क्रियाणा चामलत्वादिगुणाना युगपत्तत । अवस्थान भवद् यत्र सोऽलकार समुच्चय ।। अचि0, 4/295
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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