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________________ :: 201 :: 120 प्रश्नपूर्वक शाब्दवर्ण्य परिसख्या प्रश्नपूर्वक आर्थवर्ण्य परिसख्या अप्रश्नपूर्वक शाब्दवर्ण्य परिसख्या अप्रश्न पूर्वक आर्थवर्ण्य परिसख्या श्लेषजन्य परिराख्या परवी काल मे आचार्य रुय्यक विद्यानाथ ने भी अजितसेन द्वारा निरूपित सभी भेदों को स्वीकार कर लिया है ।। पण्डित राज जगन्नाथ ने भी आदि के चार भेदों का निरूपण किया है । किन्तु इन्होंने शुद्धा शाब्दी तथा शुद्धा आथी, प्रश्न पूर्विका तथा अप्रश्न पूर्विका का उल्लेख किया है 12 उक्त विवेचन के अवलोकन से विदित होता है कि आचार्य रुय्यक तथा विद्यानाथ ने परिसख्या के पाँचों भेदों को स्वीकार करके अजितसेन की भेद निरूपण सरणि को स्वीकार करके अलकार श्रृंखला में वृद्धि की । उत्तरः आचार्य रुद्रट के अनुसार जहाँ उत्तर वचन श्रवण से उत्तर की प्रतीति हो, वहाँ उत्तर अलकार होता है । इसके अतिरिक्त इन्होंने एक अन्य उत्तर का भी उल्लेख किया है जहाँ इन्होंने यह बताया है कि ज्ञात प्रसिद्ध उपमान से भिन्न वस्तु उपमेय के पूछे जाने पर उपमान के सदृश वस्तु का जहाँ कथन किया जाए वहाँ उत्तर अलकार होता है । आचार्य मम्मट के अनुसार जहाँ उत्तर के श्रवण मात्र से प्रश्नोन्नयन हो अथवा प्रश्न के अनेक असभाव्य उत्तर दिए जाएं, वहाँ उत्तरालंकार होता है। इनकी परिभाषा पर रुद्रट की प्रथम परिभाषा का प्रभाव परिलक्षित होता है । एक अ0स0, पृ0 - 193-95 ख प्रताप0 पृ0 - 550 र0ग0, पृ0 - 653 रू0, काव्या0, 7/93 का0प्र0, 10/121
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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