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________________ का प्रतिपादन किया जाता है । कभी-कभी उपमेय की अधिकता के कथन से भी भेद प्रधान सादृश्य की प्रतीति मे व्यतिरेक अलंकार होता है ।। आचार्य विद्यानाथ विश्वनाथ पञ्चानन तथा अप्यय दीक्षित उपमेय की अल्पता मे व्यतिरेक अलकार को स्वीकार करते हैं । 2 जो अजितसेन कृत परिभाषा के प्रथम भेद से प्रभावित है। इसके अतिरिक्त भामहं दण्डी, पण्डितराजादि उपमेय की अधिकता मे इस अलकार को स्वीकार करने के पक्ष में हैं । 3 श्लेष सर्वप्रथम आचार्य भामह ने श्लेष अलकार का निरूपण किया है 1 किन्तु पूर्व ही भरतमुनि ने गुण प्रकरण में स्थान देकर इसके महत्त्व की अभिवृद्धि की है । जिसके आधार पर परवर्ती काल मे शब्द श्लेष और अर्थ श्लेष की उद्भावना हुई 14 भामह के अनुसार गुण, क्रिया, नाम या सज्ञा के द्वारा उपमान का उपमेय के साथ अभेद स्थापन को श्लेष के रूप में स्वीकार किया गया है |5 2 3 - 4. 5 प्रतिबिम्बनं भेदप्रधान तु सदृक्षत्व सधर्म पो. । अल्पाधिक्योक्तिभेदेन व्यतिरेको द्विधा यथा ।। सधर्म पोरूपमानोपमेययोरूपमानादुपमेयस्याल्पत्वेन भेदमुख्यं सादृश्यं प्रतीयते स व्यतिरेक । (क) भेदप्रधान साधर्म्यमुपमानोपमेययो । आधिक्याल्पत्वकथनाद् व्यतिरेक स उच्यते ।। (ख) सा0द0, 10/52 57 [ग कुवलयानन्द jap चन्द्रालोक - 5/59 - ० क ० भा०काव्या० - 2/75 (ख) काव्यादर्श 2/180 [ग] रसगंगाधर पृ0 - 557 ना0शा0, 16/98-99 भा०काव्या० 3/14-15 - आधिक्येन वा वचनेन अ०चि० 4 / 239 एवं वृत्ति प्रताप०, पृ0-525
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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