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________________ इनकी परिभाषा मे निम्नलिखित तत्त्वों का आधान हुआ है (10 (20 निदर्शना 1 इन अलंकार का सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य भरत ने अपने नाट्यशास्त्र मे किया है । इनके अनुसार जहाँ उपमान की अपेक्षा प्रसिद्ध किन्तु उदासीन पदार्थों का कथन हो वहाँ निदर्शना अलकार होता है । 3 इन्होंने स्पष्ट रूप से उपमानोपमेयभाव का निर्देश नहीं किया है किन्तु इनके 'यत्रार्थानां प्रसिद्धना' पद से उपमेय का और 'परापेक्षाप्युदासार्थ' पद से उपमान का ग्रहण किया जा सकता है । अर्थात् जहाँ उपमान के द्वारा उपमेय का निर्देश किया जाए, वहाँ निदर्शना अलंकार होता है। 2 - 3 आचार्य भामह के अनुसार दृष्टान्त अलंकार मे क्रिया के द्वारा ही विशिष्टार्थ का प्रतिपादन किया जाता है । इसमें यथा, इव, वति आदि सादृश्यमूलक शब्दों का प्रयोग नहीं होता है । 4 4 इस अलकार मे सर्वथा दो वाक्य होते है । प्रथम वाक्य द्रान्तिक होता है तथा द्वितीय वाक्य दृष्टान्त । दण्डी के अनुसार अर्थान्तर में प्रवृत्त कर्ता के द्वारा जहाँ सदसदात्मक तत्सदृश फल की उत्पत्ति हो वहाँ निदर्शना अलंकार होता है । 5 5 दोनों ही वाक्यों मे बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव का होना आवश्यक बताया गया है । परवर्ती आचार्यों की परिभाषाएँ अजितसेन से प्रभावित हैं । 2 - का०प्र०, बालबोधिनी टीका, पृ० (क) चन्द्रालोक (ख) प्रताप, पृष्ठ (ग) र०ग०, पृ० - - 5/56. -521 452 · भा०काव्या० - 3/33 काव्यादर्श, 2/348 637 यत्रार्थाना प्रसिद्धाना क्रियतेपरिकीर्तनम् । परापेक्षाप्युदासार्थं तन्निदर्शनमुच्यते ।। ना०शा० 16 / 15
SR No.010838
Book TitleAlankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArchana Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1918
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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